Re: "संता-बंता" कौन थे?
दीपू जी, यह सूचना आप कहाँ से ले आये कि संता बंता के चुटकले तत्कालीन कांग्रेस सरकार द्वारा प्रायोजित थे और 1984 में इंदिरा गांधी हत्याकाण्ड में शामिल सतवंत सिंह और बेअंत सिंह के नाम पर इसलिए वजूद में आये ताकि सिख कौम का मजाक उड़ाया जा सके. संता बंता जैसे नाम तो घर घर में पाये जाते है जैसे पंजाबी हिन्दुओं में विक्की, बंटी, बबली, शोकी, पप्पू, सोनू, गोलू और राजू आदि नाम पाए जाते हैं. इस तरह की बचकाना बातें न तो देश के हित में हैं और न ही हिन्दुओं या सिखों के परंपरागत सम्बन्धों के हित में हैं.
मैं जब छोटा था (1950 और 60 के दशक में), उस समय भी सरदारों के जोक्स प्रचलित थे और लोग उन्हें मजे से सुना और सुनाया करते थे. उसके बाद कॉलेज में (1967 के आसपास) मेरे सिख सहपाठी खुद सरदारों के ऐसे ऐसे जोक्स सुनाते थे कि हँसते हँसते पेट में बल पड़ जाते थे. सरदारों के नाम पर यूं ही जोक्स नहीं बन गये. सिख कौम बहादुर है और ज़िन्दगी का भरपूर लुत्फ़ लेने वाली कौम है. हंसी मज़ाक उनके जीवन का एक अभिन्न अंग है. भारत में जिंदादिली की बात करें तो सिखों का मुकाबला शायद ही कोई और तबका कर सके.
आपको याद होगा कि ऑपरेशन ब्लू स्टार के विरोध में सरदार खुशवंत सिंह ने अपनी 'पद्मविभूषण' की पद्वी सरकार को लौटा दी थी. लेकिन इसके बावजूद उनकी जोक बुक्स में संता-बंता के या सरदारों के जोक्स लगातार छपते रहे.
अंत में मैं कहना चाहूँगा कि कोई सरकार कभी चुटकुले नहीं बनाती बल्कि सरकार अपने कामकाज से खुद कार्टून बन जाती है और राजनैतिक कार्टूनों का पहला लक्ष्य होती है.
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