05-10-2018, 11:59 PM
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Re: महाभारत के पात्र: कर्ण
महाभारत के पात्र: कर्ण
मैं अपने आप को बादल सा हलका और कष्टों से मुक्त पा रहा हूँ। चारो ओर हाहाकार और रुदन है। रक्त धारा धरा के रंग को बदल रही है। यहाँ पर उपस्थित नर और नारी व्यथित हैं। सभी के आश्रुपुर्ण नयन हैं। पति, पुत्र या पिता के लिए विलाप करनेवालों की आवाज़ वातावरण को व्यथित कर रहीं है। पर मैं असीम सुख के सागर में डूब उतरा रहा हूँ। अब ना कोई दुख है ना कष्ट।
मैं, अंग नरेश, महायोद्धा , दानवीर, धर्मनिष्ठ, तेजोमय सूर्यपुत्र, ज्येष्ठ कुंती नन्दन, कौंतेय, कर्ण या राधेय का शरीर कुरुक्षेत्र की धरा पर अवश, निर्जीव पड़ा है। तन पर अनेकों घाव हैं। साथ है, बेरहमी से खींच कर निकाले कवच-कुंडल का ताज़ा घाव और मुख से बहती रक्त धार।
मेरे रथ का चक्का मृतिका में अटका , जकड़ा है। मैंने अपने सभी अस्त्र-शस्त्र रख कर दोनों हाथों से माटी में धसें रथ के चक्र को निकालने का असफल प्रयास कर रहा था। तभी छल से , युद्ध विधान के विपरीत, मुझ पर अर्जुन ने वार किया।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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