06-04-2013, 08:22 PM
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Re: इधर-उधर से
आज़ादी क्या आज़ादी
(रचना: यदुकुलनंदन खरे)
यह आज़ादी क्या आज़ादी,
जिसमे श्रद्धा विश्वास नहीं हो;
कर्मो का अहसास नहीं हो!
निरपराध को राह नहीं हो.
न्याय जहाँ पर लाज बचाने, कहीं दूर जा छिप जाता है,
अन्यायी अपनी ताकत से, विजय पताका फहराता है.
यह आज़ादी क्या आज़ादी,
जिसमे सच्चा न्याय नहीं हो!
मानवता की चाह नहीं हो !
निर्धन हर दम पिस्ता रहता, अपने पथ से हटता रहता,
मात्र पेट की खातिर बंदा, दर दर ठोकर खाता फिरता.
यह आज़ादी क्या आज़ादी,
जिसमे मानव को प्यार नहीं हो!
श्रम की भी प्रवाह नहीं हो!
जन सेवा के बल पर ऊंचे महल जहाँ बनवाये जाते,
बापू नेहरु के सपनो पर, मात्र प्लान बनवाये जाते.
यह आज़ादी क्या आज़ादी,
जहाँ स्वजन का स्नेह नहीं हो!
राष्ट्र-प्रेम का भाव नहीं हो!
थोथे आदर्शों से हम सब, प्रगतिशील क्या बन सकते हैं?
नंगे-भूखे-भिखमंगों का पेट कभी क्या भर सकते हैं?
यह आज़ादी क्या आज़ादी,
जहाँ हाथ को काम नहीं हो!
जन जन का कल्याण नहीं हो!
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