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Old 16-11-2012, 12:06 PM   #7
arvind
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Default Re: सफलता की सीढ़ी।

जितना ज्यादा चाहिए उतना अधिक श्रम करें

रॉकी 4-5 सालों बाद एक दोस्त की शादी में अपने तीन अजीज दोस्तों से मिला. एक अर्से बाद जहां स्कूल-कॉलेज के पुराने यारों से मिलने की खुशी थी, वहीं मन के एक कोने में इस बात की कसक भी थी कि काश! आज मैं भी इनकी तरह एक कामयाब इंसान होता.

यह टिस कैसे नहीं उठती, आखिर चारों ने एक साथ सपने देखे, एक साथ खेले-कूदे और एक साथ पढ़ाई की. लेकिन कैरियर की राह में सभी बिछड़ गये. आज कोई सॉफ्टवेयर इंजीनियर, तो कोई बैंकिंग प्रोफ़ेशनल. सबकी आमदनी भी ऐसी कि कार, घर से लेकर ऐशो-आराम की सारी सुविधाएं उन्हें प्राप्त थीं. सिर्फ़ एक क्लर्क की नौकरी करनेवाला रॉकी ही इन तीनों से पीछे रह गया. यही बात रॉकी को कचोटती रहती और वह दोस्तों के सामने खुद को छोटा भी महसूस करता.

यह कहानी हमारे आपके बीच की है. क्या वजह है कि जीवन में एक समान अवसर पानेवाले लोग एक-दूसरे से आगे-पीछे हो जाते हैं? क्या वजह है कि एक क्लास में एक ही किताब पढ़नेवाले 50 बच्चों में से कोई फ़र्स्ट, कोई सेकेंड, कोई थर्ड, तो कोई फ़ेल हो जाता है? एक मजदूर था, जिसे आवश्यकता होती तो मजदूरी करता, वरना कभी यूं ही रह जाता.

एक बार उसके पास खाने को कुछ नहीं था. वह घर से मजदूरी ढूंढ़ने निकल पड़ा. धूप बहत तेज थी. उसे एक व्यक्ति दिखा, जिसने एक भारी संदूक उठा रखा था. उस व्यक्ति को मजदूर की जरूरत भी थी. उसने संदूक मजदूर को उठाने के लिए दे दिया. संदूक को कंधे पर रख कर मजदूर चलने लगा. उसके पैरों में जूते नहीं थे. सड़क की जलन से बचने के लिए कभी-कभी वह किसी पेड़ की छाया में खड़ा हो जाता. पैर जलने से वह झुंझला उठा और उस व्यक्ति से बोला- ईश्वर भी कैसा अन्यायी है. हम गरीबों को जूते पहनने लायक पैसे भी नहीं दिये.

उसकी बात सुन व्यक्ति खामोश रहा. दोनों थोड़ा आगे बढ़े ही थे कि उन्हें एक ऐसा व्यक्ति दिखा, जिसके पैर नहीं थे. वह जमीन पर घिसटते हए चल रहा था. यह देख व्यक्ति मजदूर से बोला- तुम्हारे पास तो जूते नहीं हैं, परंतु इसके तो पैर ही नहीं हैं. जितना कष्ट तुम्हें हो रहा है, उससे कहीं अधिक कष्ट इसे हो रहा होगा. तुमसे भी छोटे और दुखी लोग संसार में हैं. तुम्हें जूते चाहिए, तो अधिक मेहनत करो. हिम्मत हार कर ईश्वर को दोष देने की जरूरत नहीं.

ईश्वर ने नकद पैसे तो आज तक किसी को भी नहीं दिये, परंतु मौके सभी को बराबर दिये हैं. उस व्यक्ति की बातों का मजदूर पर गहरा असर हआ. वह उस दिन से अपनी कमियों को दूर करने में जुट गया और अपनी योग्यता व मेहनत से जीवन को बेहतर बनाने में सफ़ल भी हुआ.

जीवन से जितनी अपेक्षाएं आपको हैं, उस मुताबिक परिश्रम भी करें. असफ़लता के लिए किस्मत को कोसना या संसाधन का रोना रोना, कुंठा की वह चादर है, जिससे अपनी कमियों को ढंक कर सिर्फ़ झूठा संतोष ही प्राप्त किया जाता है, सफ़लता नहीं.

- बात पते की
* जीवन में अवसर सभी को मिलते हैं, बस इसे पहचानने की जरूरत है.
* असफ़लता के लिए किस्मत या भगवान को कोसने की बजाय अपनी कमियों को दूर कर आगे बढ़ें.
* मन में कुंठा पालने की बजाय मेहनत को अपनी ताकत बनायें.
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