पुण्यतिथि : मेहदी हसन
तेरा मिलना बहुत अच्छा लगे है...
गजल गायकी के इस धुरंधर को अब उनके चाहने वाले भले ही लाइव ना सुन पाएं, लेकिन उनकी आवाज उनकी गाई गजलों के माध्यम से हमेशा लोगों के दिलों में जिंदा रहेगी। मशहूर गजल गायक मेहदी हसन का गत वर्ष 14 जून को निधन हो गया था। यह वह शख्स थे जिन्हें हिंदुस्तान व पाकिस्तान में बराबर का सम्मान मिलता था और इन्होंने अपनी गायिकी से दोनों देशों को जोड़े रखा था।
जीवन परिचय
राजस्थान के झुंझुनूं जिले के लूणा गांव में 18 जुलाई, 1927 को जन्में हसन का परिवार संगीतकारों का परिवार रहा है। हसन के अनुसार कलावंत घराने में उनसे पहले की 15 पीढ़ियां भी संगीत से ही जुड़ी हुई थी। कहते हैं ना कि स्कूल के पहले बच्चा अपने घर में ही प्राथमिक शिक्षा प्राप्त कर लेता है, वैसे ही हसन ने भी अपने पिता व संगीतकार उस्ताद अजीम खान व चाचा उस्ताद इस्माइल खान से संगीत की प्राथमिक शिक्षा प्राप्त की थी। भारत-पाक बंटवारे के बाद उनका परिवार पाकिस्तान चला गया। वहा उन्होंने कुछ दिनों तक एक साइकिल दुकान में काम किया और बाद में मोटर मेकैनिक का भी काम कर लिया, लेकिन संगीत को लेकर उनके दिल में जज्बा व जुनून था वह कभी कम नहीं हुआ।
गायकी की शुरुआत
वर्ष 1950 का दौर उस्ताद बरकत अली, बेगम अख्तर, मुख्तार बेगम जैसों का था, जिसमें मेहंदी हसन के लिए अपनी जगह बना पाना सरल नहीं था। एक गायक के तौर पर उन्हें पहली बार वर्ष1957 में रेडियो पाकिस्तान में बतौर ठुमरी गायक पहचान मिली। इसके बाद मेहदी हसन ने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा। फिर क्या था फिल्मी गीतों की दुनिया में व गजलों के समुंदर में वह छा गए।
अंतिम समय
गौरतलब है कि वर्ष 1957 से 1999 तक सक्रिय रहे मेहदी हसन ने गले के कैंसर के बाद पिछले 12 सालों से गाना लगभग छोड़ ही दिया था। उनकी अंतिम रिकॉर्डिग 2010 में सरहदें नाम से आई जिसमें फरहत शहजाद ने अपना लेख दिया। तेरा मिलना बहुत अच्छा लगे है... वर्ष 2009 में इस गाने की रिकार्डिग पाकिस्तान में की गई। दूसरी ओर उसी ट्रैक को सुनकर वर्ष 2010 में लता मंगेशकर ने अपनी रिकॉर्डिग मुम्बई में शुरू कर दी। हसन की हजारों गजलें कई देशों में जारी हुई। पिछले 40 साल से भी अधिक समय से संगीत की दुनिया में गूंजती शहंशाह-ए-गजल की आवाज की विरासत संगीत की दुनिया को हमेशा रौशन करती रहेगी।
सम्मान और पुरस्कार
मेहदी हसन को गायकी की वजह से संगीत की दुनिया में कई सम्मान प्राप्त हुए हैं। जनरल अयूब खां ने उन्हें ‘तमगा-ए-इम्तियाज’, जनरल जिया उल हक ने ‘प्राइड आॅफ परफ ॉर्मेंस’ और जनरल परवेज मुशर्रफ ने ‘हिलाल-ए-इम्तियाज’ पुरस्कार से सम्मानित किया था। इसके अलावा भारत ने वर्ष 1979 में ‘सहगल अवॉर्ड’ से सम्मानित किया।