Re: ~!!शेखचिल्ली!!~
शेखचिल्ली की माँ ने देखा क़ी बेटा बगल के गाँव बाले मुखिया की लड़की से शादी कर लाया है। उसकी माँ ने यः भी देखा क़ी शेखचिल्ली दहेज़ में बहुत-सी दौलत तथा समान इत्यादि ले आया है, तो वह मन ही मन बहुत खुश हो गई।
परन्तु वह जानती थी कि शेखचिल्ली एक बिलकुल बेकार लड़का है। इस्कू पैसा कमाने का कोई भी हुनर मालुम नहीं। इसलिये वह कहने लगी-बेटा तू महालानतो आदमी है। तेरे किये कुछ भी होने का नहीं।
यह सुनकर शेखचिल्ली ने कहा-"माँ! मैंने इतना बड़ा काम किया है। क्या यह कम है?"
उसकी माँ ने कहा-बेटा ! यह बिल्ली के भाग्य से छींका टूट गया है। तू अगर अपने मन से जान-बूझकर कोई काम करे और उसमें कोई तरक्की करके चार पैसे कमाकर ला सके तो मैं जानू। तू मुझे बुढापे में सुख नहीं दे सकता।
यह सुनकर शेखचिल्ली ने कहा-माँ तू ऐसा मत बोल मैं वक़्त आने पर तेरे लिये कुछ कर सकता हूं।
इसी तरह कुछ और वक़्त बीत गया। उसकी औरत नैहर चली गयी और एक साल बीत गया। एक दिन उसने ससुराल जाने की ठान ली। मान से पुचा-अम्मीजान मेरी ससुराल कहाँ है? मुझे उसका पता बताओ, ताकि मैं वहां एक बार हो आऊं मैं भूल गया हूँ।
इस पर उसकी माँ ने कहा-बेटा तुझमे अक्ल तो है ही नहीं। इसलिये अगर मैंने पता बताया तो तू भूल जाएगा। इसलिये मेरी बात का ख़याल रखे तो सीता अपने ससुराल पहुँच जाएगा। यह कहकर उसने कहा-बेटा तू सीधा अपनी नाक की सीध में चले जाना, कहीं से इधर-उधर मुड़ना नहीं, बस सीधे अपनी ससुराल पहुँच जाएगा।
यह सुनकर शेखचिल्ली सीधन ससुराल को चल दिया। चलते चलते उसकी माँ ने कहा बेटा! जो साग सत्तू घर में था मैंने बाँध दिया है। यह पोटली लेता जा और बूख लगने पर यही साग-सत्तू खा लेना।
शेखचिल्ली अपने घर से चलकर सीधा अपने नाक की सीध में रवाना हुआ। वह जब अपने घर से सीधा मैदान में दो तीन कोस निकल आया, तो सामने एक दरख्त पडा। उसने सोचा-माँ ने नाक की सीध में चलने को कहा था। यह सोचकर वह पेड़ पर चढ़ गया और फिर दूसरी तरफ से उतर फिर नाक की सीच में रवाना हुआ।
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