Re: लोककथा संसार
निमाड़ी लोककथा
सेवा का फल
आलेख: रामनारायण उपाध्याय
(निमाड़ नाम कतिपय पुस्तकों में निमाउड़ के रूप में लिखा गया है। कालान्तर में तथा कई अवस्थाओं से गुजरने के बाद निमाउड़, नेमावड़ या निमाड़ नाम सरल रूप से निमाड़ हो गया। भौगोलिक सीमाओं की बात करें तो निमाड़ के एक तरफ़ विन्ध्य पर्वत और दूसरी तरफ़ सतपुड़ा हैं, जबकि मध्य में नर्मदा नदी है।विश्व की प्राचीनतम नदियों में से एक बड़ी नदी नर्मदा का उद्भव और विकास निमाड़ में ही हुआ।)
छोटे-से गणपति महाराज थे। उन्होंने एक पुड़िया में चावल लिया, एक में शक्कर ली, सीम में दूध लिया और सबके यहां गये। बोले, "कोई मुझे खीर बना दो।"
किसी ने कहा, मेरा बच्चा रोता है; किसी ने कहा, मैं स्नान कर रहा हूं; किसी ने कहा, मैं दही बिलो रही हूं।
एक ने कहा, "तुम लौंदाबाई के घर चले जाओ। वे तुम्हें खीर बना देंगी।"
वे लौंदाबाई के घर गये। बोले, "बहन, मुझे खीर बना दो।"
उसने बड़े प्यार से कहा, "हां-हां, लाओ, मैं बनाये देती हूं।"
उसने कड़छी में दूध डाला, चावल डाले, शक्कर डाली और खीर बनाने लगी तो कड़छी भर गई। तपेले में डाली तो तपेला भर गया, चरवे में डाली तो चरवा भर गया। एक-एक कर सब बर्तन भर गये। वह बड़े सोच में पड़ी कि अब क्या करूं ?
गणपति महाराज ने कहा, "अगर तुम्हें किन्हीं को भोजन कराना हो तो उन्हें निमंत्रण दे आओ।"
वह खीर को ढककर निमंत्रण देने गई। लौटकर देखा तो पांचों पकवान बन गये थे।
उसने सबको पेट भरकर भोजन कराया। लोग आश्चर्यचकित रह गये। पूछा, "क्यों बहन, यह कैसे हुआ ?"
उसने कहा, "मैंने तो कुछ नहीं किया। सिर्फ अपने घर आये अतिथि को भगवान समझकर सेवा की, यह उसी का फल था। जो भी अपने द्वार आए अतिथि की सेवा करेगा, अपना काम छोड़कर उसका काम पहले करेगा, उस पर गणपति महाराज प्रसन्न होंगे।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
Last edited by rajnish manga; 26-01-2014 at 10:03 PM.
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