Re: प्राचीन सूफ़ी संत और उनका मानव प्रेम
गुलिस्ताँ की चंद कथाएं
1. मुबारकबाद
किसी ने नौशेरवां बादशाह के दरबार में आ कर अर्ज़ किया, “ मुबारक हो! खुदा ने आपके फलां दुश्मन को दुनियां से उठा लिया.” बादशाह ने कहा, “क्या तुझे ये खबर मिली है कि खुदा मुझे छोड़ देगा? दुश्मन की मौत पर खुश होने का क्या मौका है जब हमें एक दिन खुद मरना है?”
2. पांव जूते में
मैंने कभी कीमत की शिकायत नहीं की मगर मैं नंगे पांव था और मेरे पास जूता नहीं था.इस दर्द के साथ मैं कुफ़े (शहर का नाम) की मस्जिद मैं दाखिल हुआ. वहां मैंने एक आदमी को देखा जिसके पांव ही नहीं थे. उसे देख कर मैं अपनी हालत पर खुश हुआ और खुदा का शुक्र बजा लाया. सच है पेट भरे आदमी के लिए मुर्ग़ भी घास के बराबर है और भूखे आदमी के लिए जला हुआ शलगम भी भुने हुए मुर्ग़ से कम नहीं.
3. घर की खबर नहीं
एक नजूमी अपने घर लौटा तो उसने वहां एक ग़ैर आदमी को अपनी बीवी के साथ देखा. बहुत हैरान हुआ. गुस्से में आकर उसे गालियाँ दीं और झगड़ा शुरू हो गया. एक अक्लमंद आदमी जो ये सब देख रहा था बोला, “मियां, तुम आसमान की बातें कैसे करते हो, जब तुम्हें अपने ही घर की खबर नहीं?”
(साभार- श्री गोपी चंद नारंग – Readings in literary Urdu prose)
Last edited by rajnish manga; 01-03-2013 at 10:07 PM.
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