Re: श्रीयोगवशिष्ठ
इससे अब तुम वही उपाय करो जिससे उनकी चिन्ता निवृत्त हो । इतना सुन विश्वामित्रजी बोले हे साधो! यदि रामजी ऐसे है तो हमारे पास लावो, हम उनका दुःख निवृत्त करेंगे । हे राजन्! दशरथ! तुम धन्य हो; जिनका पुत्र विवेक और वैराग्य को प्राप्त हुआ है ।हम तुम्हारे पुत्र को परम पद प्राप्त करावेंगे और अभी उनके सब दुःख मिट जावेंगे । हम और वशिष्ठादि एक युक्ति से उपदेश करेंगे उससे उनको आत्मपद की प्राप्ति होगी । तब वह दशा तुम्हारे पुत्र की होगी कि वह लोष्ट, पत्थर और सुवर्ण को समान जानेंगे । जो क्षत्रियों का प्राकृतिक आचार है सो वह करेंगे और हृदय से उदासीन रहेंगे इससे तुम्हारा कुल कृतार्थ होगा । तुम रामजी को शीघ्र बुलावो । इतना कह कर वाल्मीकिजी बोले, हे भारद्वाज! ऐसे मुनीन्द्र के वचन सुनकर राजा दशरथ ने मन्त्री और नौकरों से कहा कि राम, लक्ष्मण और शत्रुघ्नको साथ ले आवो । जब मन्त्री और भृत्योंने रामजी के पास जाकर कहा तो रामजी आये और राजा दशरथ, वशिष्ठजी और विश्वामित्र को देखा कि तीनों पर चमर हो रहे हैं और बड़े बड़े मण्डलेश्वर बैठे हैं ।
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