30-10-2010, 06:10 PM
|
#4
|
Exclusive Member
Join Date: Oct 2010
Location: Bihar
Posts: 6,259
Rep Power: 34
|
सिंहासन बत्तीसी 03
एक दिन राजा विक्रमादित्य नदी के किनारे अपने महल में बैठे गाना सुन रहे थे। उनका मन संगीत के रस में डूबा हुआ था। इतने में एक आदमी गुस्सा होकर अपनी स्त्री और बच्चे के साथ घर से निकला और वे सब-के-सब नदी में कुद पड़े। जब वे डूबने लगे तो उन्होनें पुकारा कि है कोई धर्मात्मा, जो हमें निकाले! आदमी बहुत 'हाय-हाय' कर रहा था और अपनी करती पर पछता रहा था। तभी राजा के आदमियों ने राजा को खबर दी। वे दौड़े आये। आदमी हैरान होकर कह रहा था कि है कोई ईश्चर का, बंदा जो हमें पार लगाये! राजा वहां आया और उन लोगों को डूबते देख स्वयं नदी में कूद पड़ा। पानी में आगे बढ़कर उसने स्त्री और बच्चे का, हाथ पकड़ लिया। तभी वह आदमी भी राजा से लिपट गया। राजा घबराया। उनके साथ वह भी डूबने लगा। उसी समय उसे अपने दोनों वीरों की याद आयी। याद आते ही वे दोनों वहां आ गये और चारों को बाहर निकाल लाये।
वह आदमी राजा के "पैरो पर गिर पड़ा और बोला, "महाराज! आपने हमारी जान बचाई है, आप हमारे भगवान हो।" राजा ने कहा, "बचाने वाला तो ईश्चर है।" और बहुत-सा धन देकर उन्हें विदा किया।
पुतली बोली, "हे राजन्! इतने हिम्मत वाले हो तो सिंहासन पर बैठो।"
मुहूर्त टल गया। अगले दिन राजा सिंहासन पर बैठने के लिए आया तो चंद्रवाली नाम की चौथी पुतली ने उसे रोका और कहा कि पहले मेरी बात सुन लो।
|
|
|