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Originally Posted by neha
मैं आपके विचारों से सहमत नहीं हूँ, आप सिक्के के एक ही पहलु को देख रहे है. इन्ही बहुराष्ट्रीय कंपनियों के कारण आज भारत प्रगति के शिखर पर बढ रहा है. रोज़गार के नए अवसर पैदा हो रहे है. शायद आप किसी सरकारी नौकरी में है इसलिए इस तरह की राय रखते है.
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मैँने केवल उद्धृत कविता के सन्दर्भ मेँ एक सहज प्रतिक्रिया व्यक्त की थी । उस कविता के दर्द को बाँटने की कोशिश की थी । उसके अस्तित्व को एक पहलू के रूप मेँ आपके द्वारा भी स्वीकारा गया है ।हाँ दूसरा पक्ष हमारे देश की प्रगति के रूप मेँ भी मुझे स्वीकार्य है । प्रगति के फेर मेँ उस इँजीनियर के दर्द का उसके मानसिक संताप का क्या होगा , विचारणीय है ।