01-09-2015, 09:51 PM
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Re: छींटे और बौछार
गीत
ज़फ़र गोरखपुरी
खुदा ने दिल बनाकर क्या अनोखी शय बनाई है
ज़रा सा दिल है, इस दिल में मगर सारी खुदाई है
ये दिल अल्लाह का घर है, ये दिल भगवान का घर है
बदी दिल में समां जाये तो दिल शैतान का घर है
इसी दिल में भलाई है. इसी दिल में बुराई है
ये दिल फुल है, चट्टान है, मौज-ए-समुन्दर है
ये नरम पानी है, यही दिल सख्त पत्थर है
छुपा है दर्द, बेदर्दी भी इसी दिल में समाई है
जो चाहे देख लो इसमें ये आईने से सच्चा है
समझदारी में बुढा है, तो भोलेपन में बच्चा है
खिलौना भी ये बन जाता, आदत ऐसी पाई है
बड़ी मुश्किल है, इसका साथ छोड़ा भी नहीं जाये
अगर एक बार टूटे तो ये जोड़ा भी नहीं जाये
गुलो की आंच से शीशे की फितरत जो पाई है
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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