Re: चाणक्यगीरी
चाणक्य ने बात घुमाते हुए कहा- ‘‘चलिए छोडि़ए। जब विद्योत्तमा के आदेश पर अजूबी ने मुझे अपने घर में हाउस-अरेस्ट कर लिया था और किसी हालत में मुझे छोड़ने के लिए तैयार नहीं थी तो मैंने सिर्फ़ माचिस की तीली से अजूबी के सिर पर मारा था और वह बेहोश हो गई थी।’’
महागुप्तचर ने आश्चर्यपूर्वक पूछा- ‘‘माचिस की तीली से मारने पर अजूबी कैसे बेहोश हो सकती है? वह तो अकेले एक हज़ार सैनिकों से लड़ती है। कहीं अजूबी बेहोश होने का नाटक तो नहीं कर रही थी?’’
चाणक्य ने कहा- ‘‘मैं भी यही समझा था, लेकिन अजूबी ने बाद में बताया था- वह सदमे के कारण सचमुच बेहोश हो गई थी, क्योंकि वह इस बात को बर्दाश्त नहीं कर पाई थी कि मैं माचिस की तीली से ही सही, उसे मारने का प्रयत्न कर सकता हूँ। अगर मैं अजूबी को मारने के लिए कहीं लाठी-डण्डा उठा लेता तो बेचारी बिना मारे ही सदमे के कारण मर जाती। बड़ा पाप चढ़ता। क्या इन सब बातों से यह साफ पता नहीं चलता- इस बार भी सिर्फ़ खदेड़कर पकड़ने के नाटक के साथ दावत दी जा रही है।’’
उसी समय बाहर से ढोल-ताशा और नगाड़ा बजने की आवाज़ सुनकर चाणक्य ने कहा- ‘‘लीजिए, राजरथ-वन की जाँच-पड़ताल पूरी हो चुकी है और मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त महामंत्री राजसूर्य के साथ हमें सी-ऑफ़ करने के लिए आ चुके हैं। अब आप जल्दी से बताइए- हमारे मैसूर-यात्रा में बाधा कहाँ से आ रही है?’’
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