Re: इधर-उधर से
इमरजेंसी में सोशल नेटवर्किंग साइट्स के कारनामे
अमरीका में रहने वाली उसकी ऑनलाइन फ्रेंड ने उसके इस सन्देश को पढ़ा. उसे नहीं पता था कि उसका यह मित्र ब्रिटेन में कहाँ रहता है. उस लड़की ने अपनी माँ को इस बारे में सूचित किया. माँ ने मेरीलैंड स्थित पुलिस विभाग को सूचित किया. यहाँ की पुलिस ने व्हाइट हाउस के स्पेशल एजेंट से संपर्क किया. उसने वाशिंगटन स्थित ब्रिटिश दूतावास से बात की. उन्होंने ब्रिटेन की मेट्रोपोलिटन पुलिस से संपर्क किया जिसने उस छात्र के घर का पता लगाया और टेम्ज़ वैली जगह के पुलिस अधिकारी उसके घर पहुँच गए. उस लड़के ने नींद की काफी गोलियाँ खा ली थीं. पुलिस ने उसे अविलंब अस्पताल पहुंचाया जहाँ उसकी जान बच गई.
इसी प्रकार की एक घटना भारत में भी सामने आयी. यहाँ मुंबई में डोम्बिवली में रहने वाले माधव करंदीकर के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. करंदीकर स्कूल के रिटायर्ड चौकीदार थे जिनका एक्सीडेंट हो गया था. वह सीढ़ियों से फिसल गए और उनके दोनों पैरों में फ्रेक्चर हो गया. डॉक्टरों ने इलाज के लिए लगभग दो लाख का खर्चाबताया. उन्हें कुल 4000 रूपए मासिक पेंशन मिलती थी. अब क्या किया जाये. उनके स्कूल के छात्रों को पता चला तो वे सहायता के लिए सामने आये. उन्होंने अपने करंदीकर काका की सहायता के लिए इलाज की रकम जुटाने के लिए फेसबुक पर सहायता की अपील जारी की. 15 दिन के अन्दर ही आवश्यक राशि जमा हो गयी और माधव करन्जीकर का इलाज संभव हो सका.
इसके अलावा, प्राकृतिक आपदाओं के समय भी हर प्रकार की सोशल नेटवर्किंग साइट्स ने उल्लेखनीय काम किया है जिसके बारे में समय समय पर मीडिया में पढने सुनने को मिलता रहता है.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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