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Old 27-08-2015, 10:14 PM   #3
rajnish manga
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Default Re: कब हो ही सोनहा बिहान

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Originally Posted by अरुण कान्त शुक्ल View Post
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पिछले दो दशकों से भारत की राजनीति एक ऐसे दौर से गुजर रही है, जिसमें कर्म, सेवा, तथा शोषितों के उत्थान के लिए अदम्य भावना के स्थान पर आत्मकेंद्रित आत्मतुष्टता तथा आत्म मुग्धता की राजनीति को केन्द्रीय स्थान प्राप्त है| यह प्रदर्शनी भी इस भाव से अछूती नहीं थी| ..... सभी आपको आभास कराते हैं कि सब कुछ बढ़िया है और बेहतर है| आप भूल जाईये कि सुदूर बस्तर में सैकड़ों स्कूल रोज नहीं खुलते, कि स्कूल भवनों में सीआरपीएफ़ और बीएसएफ के जवान रुकते हैं , इसलिए माओवादी उन स्कूलों को ध्वस्त कर चुके हैं| आप किससे पूछेंगे कि क्यों प्रदेश में 86% बेटियाँ ऐसी हैं जो पढ़ाई को बीच में ही छोड़ चुकी हैं| आपका यह सवाल आपके मन में ही रहेगा कि बढ़ती स्वास्थ्य सुविधाएं किसे कहें? स्मार्ट कार्ड से पैसा कमाने के लिए जबरिया गर्भाशय निकालने को, नसबंदी शिविरों में लापरवाही से हुई मौतों को, या मोतियाबिंद के आपरेशन में अंधे होने वाले मामलों को या निजी अस्पतालों में हो रही लूट और धांधली को? महिला सशक्तिकरण के पोस्टर देखते हुए आपको यह कोई नहीं बताएगा कि आज भी प्रदेश की 52% महिलाओं का प्रसव अस्पताल में नहीं होता है| सुशासन, वह तो रोज आप चेन खींचने, ठगी करने, हत्याओं के रूप में देखते हैं| भारत में ट्रेन के अपहरण की अकेली घटना हमारे प्रदेश में हुई है| मीना खालको या अन्य ढेरों के बलात्कार और मार दिए जाने की बात आप अपने मन में रखिये|
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सरकारी तौर पर आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम ‘सोनहा बिहान’ के संदर्भ में आपने शब्दों के रूप में सचमुच अपना कलेजा निकाल कर रख दिया है. समाज के दर्द को आपने न सिर्फ महसूस किया है बल्कि उसे सामूहिक पीड़ा के रूप में पूरी संजीदगी से व्यक्त भी किया है. आजकल सत्ता के गलियारों में दिखावे की संस्कृति का पोषण हो रहा है. सांस्कृतिक कार्यक्रमों में पहले की तरह की सादगी, शालीनता व ईमानदारी नज़र नहीं आती. नज़र आता है तो एक मुलम्मा जो यथार्थ से कोसों दूर होता है. आपने ठीक कहा कि इस कार्यक्रम में प्रचार पर व अपने महिमा-मंडन पर तो फोकस किया गया लेकिन बहुत से जन सरोकारों को सिरे से छोड़ दिया गया और उनका ज़िक्र तक नहीं किया गया. आपने अपनी उपरोक्त पक्तियों में इन सब बातों का अच्छा खुलासा किया है.

चौंका देने वाले तथा जनता की आँखें खोल देने वाले उपरोक्त विवरण के लिए मैं आपको हृदय से धन्यवाद देता हूँ और आशा करता हूँ कि आप इसी प्रकार सांस्कृतिक एवं सामाजिक विषयों पर अपना लेखन जारी रखेंगे. धन्यवाद.



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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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