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Originally Posted by rajnish manga
जो भोजन हम सभी लोग करते हैं उसका हमारी सोच पर और हमारे व्यवहार पर कितना और कैसा प्रभाव पड़ता है, इस बारे में हम अधिक गहराई तक जाने की कोशिश नहीं करते. आपने पूरे विषय पर विहंगम दृष्टि डालते हुये हर नज़रिए से इस पर अपने तर्कपूर्ण विचार प्रस्तुत किये हैं. पूरे आलेख को पढ़ने के बाद हम इसी निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि हमारे भाव यदि सकारात्मक होंगे तो जो भोजन हम खाते या खिलाते हैं तो उसका असर भी सकारात्मक व सात्विक होता है और मानवीय प्रवृत्तियों को विकसित करता है. इस सुंदर लेख के लिये हार्दिक धन्यवाद, बहन पुष्पा जी.
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सबसे पहले आपका शुक्रिया भाई ...
आपकी बातों ने ने एक कहावत की याद दिला दी" जैसा अन्न वैसा मन " कहा जाता है न यानेकी अन्न पकाने के समय इंसान की भावनाएं उसमे निहित हो जाती है जिसका प्रभाव इंसान के मन मस्तिष्क पर पड़ता है और इसी वजह से इंसानी समाज में कई तरह के लोग पाए जाते हैं याने देखिये की कितना बड़ा प्रभाव है इस मानव समाज में घट रही घटनाओं के साथ अन्न का भी .