आज अपने ही खटकने लग गए (ग़ज़ल)
ग़ज़ल / Ghazal
आज अपने ही खटकने लग गए
रिश्ते नाज़ुक थे चटकने लग गए
रास्तों की मुश्किलें हल हो गईं
आके मंज़िल पर भटकने लग गए
क्या कभी पहले भी ऐसा था हुआ
बात करते ही अटकने लग गए
बेदखल जिनको शहर से कर दिया
फिर से गलियों में फटकने लग गए
जैसे जैसे हिज्र के दिन बढ़ गए
ज़ीस्त के दिन हाए घटने लग गए
(हिज्र = वियोग / ज़ीस्त = जीवन)
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
Last edited by rajnish manga; 03-10-2016 at 11:37 PM.
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