Re: आज अपने ही खटकने लग गए (ग़ज़ल)
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Originally Posted by soni pushpa
रिश्तों के विषय में बहुत गहन बात कही है आपने इस कविता के माध्यम से भाई
इतने बरसों से आप इतने गहन अर्थ वाली कवितायें लिख रहे हो भाई हमें इतनी भावनात्मक कवितायें पढ़ने से क्यूँ वंचित रखा? आपकी हर कविता गागर में सागर की भांति हैं भाई..
हार्दिक आभार सह बहुत बहुत धन्यवाद हमसे शेयर करने के लिए भाई
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वाह! आपने तो इस कविता की प्रशंसा में 'गागर में सागर' वाली बात पूरी कर दी. यह मेरा नहीं बल्कि आपका बड़प्पन है. आपका बहुत बहुत धन्यवाद, बहन पुष्पा जी.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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