Re: चुनावी नारें (Election Slogans)
जंग असली हो या चुनावी, नारों की अहमियत हमेशा बरकरार रहती है। नारे ही पार्टियों के चुनाव अभियान में दम और कार्यकर्ताओं में जोश भरने का काम करते हैं। हर पार्टी एक ऐसा नारा अपने लिए चाहती है जिससे वह वोटरों को लुभा सके।
उन्हीं में से कुछ नारे ऐसे निकल आते हैं, जो कई साल तक लोगों की जुबान पर चढे रह जाते हैं। इस बार स्लमडॉग... के ऑस्करी गाने जय हो का पट्टा कांग्रेस को मिल गया है, जो बीजेपी ने इसके मुकाबले फिर भी जय हो और भय हो जैसे नारे उतारे हैं।
पिछली बार भारत उदय की वजह से भाजपा अस्त हो गई थी और इंडिया शाइनिंग ने एनडीए की चमक उतार दी थी।
साठ के दशक में लोहिया ने समाजवादियों को नारा दिया था, सोशलिस्टों ने बांधी गांठ, पिछड़े पावें सौ में साठ.। ये महज नारा नहीं था बल्कि लोहिया की पूरी विचारधारा की ज़मीन थी। उस दौर में जनसंघ ने अपने चुनाव चिह्न दीपक और कांग्रेस ने अपने दौ बैलों की जौड़ी के ज़रिए एक दूसरे पर खूब निशाना साधा था।
जली झोंपडी़ भागे बैल,यह देखो दीपक का खेल
इसके मुकाबले कांग्रेस का नारा था-
इस दीपक में तेल नहीं, सरकार बनाना खेल नहीं
उसी तरह कांग्रेस का गरीबी हटाओं नारा भी खूब चर्चित रहा और भारतीय अर्थव्यवस्था और समाज की एक ज़रुरत ने वोटरों पर खासा असर डाला। उसी दौरान रायबरेली से इंदिरा को हराने में भी नारों की अहम भूमिका रही। हालांकि चिकमंगलूर से उपचुनाव भी उन्होंने नारो के रथ पर ही जीता। एक शेरनी सौ लंगूर, चिकमंगलूर, चिकमंगलूर । इसी तरह 1980 के चुनाव में कई दिलचस्प नारे गढ़े गए। इनमें इंदिरा जी की बात पर मुहर लगेगी हाथ पर, तो कई लोगो की जुबान पर आज भी है।
1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद जब तक सूरज चांद रहेगा, इंदिराजी तेरा नाम रहेगा, जैसे नारे ने पूरे देश में सहानुभूति लहर पैदा की, और कांग्रेस को बड़ी भारी जीत हासिल हुई।
1989 में बीजेपी ने राम मंदिर से जुड़े नारे भुनाए, सौगंध राम की खाते हैं हम मंदिर वहीं बनाएंगे, और बाबरी ध्वंस के बाद ये तो पहली झांकी है, काशी मथुरा बाकी है (हालांकि ये चुनावी नारा नहीं था) तो वीपी सिंह को नारों में फकीर और देश की तकदीर बनाने वाला बताया गया। लेकिन कांग्रेस ने उन्हे रंक और देश का कलंक भी बताया था। 1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद राजीव तेरा .ये बलिदान याद करेगा हिंदुस्तान सामने आया। और इसका असर भी वोटिंग पर देखा गया।
1998 में अबकी बारी अटल बिहारी बीजेपी को खूब भाया और उसने इसका खूब इस्तेमाल भी किया। यूपी में पिछले विधानसभा चुनाव में बीएसपी ने अगड़े वोट लुभाने के लिए हाथी की तुलना भगवान गणेश से कर दी थी तो समाजवादी पार्टी ने जिसने कभी न झुकना सीखा उसका नाम मुलायम है से मुलायम को खूब हौसला दिया था।
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With the new day comes new strength and new thoughts.
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