Re: मेरी कहानियाँ / दत्तक पुत्र
दूसरी ओर ललाइन का ध्यान भजन पूजन में लगने लगा था. जो स्त्री कभी अपनी मीठी बोलचाल से घर भर और मोहल्ले में मिठास भर देती थी, ऐसा प्रतीत होता था जैसे उसके चेहरे पर उभरती उम्र की लकीरें अब उसके मन पर भी खिंच आयी थीं. बोलना बतियाना जैसे उससे रूठ गये थे. बजरंगी लाला अपनी पत्नि का यद्यपि बहुत आदर करते थे और उनसे बेहद लगाव भी रखते थे, किन्तु गुस्सा !! तौबा ..... तौबा ... बात बाद में निकलती, गुस्सा पहले प्रगट हो जाता. वो मूर्तिमान क्रोध थे. क्रोध बजरंगी जी के व्यक्तित्व का हिस्सा हो कर उनसे से चिपक गया था जैसे. ललाइन पर भी बिगड़ जाते, किन्तु ललाइन के सहनशील स्वभाव के आगे वे दब जाते.
इन दोनों के अलावा घर में तीसरा प्राणी था वीजू. पुत्र की मृत्यु के बाद सहारे के लिए तथा गहन अकेलेपन को पूरने के लिए बजरंगी लाला ने इष्ट मित्रों से सलाह ले कर अपनी बुआ के पोते वीजू को गोद ले लिया था.
आरम्भ में यह सोचा गया था कि वीजू अधिकतर घर पर ही रहेगा ताकि ललाइन का मन लगा रहे. किन्तु यह क्रम अधिक दिनों तक न चल सका. धीरे धीरे लाला जी ने उसे दूकान पर बिठाना शुरू किया. स्कूल से आने के बाद खाना खाता और सीधे दूकान चला जाता. एक बच्चा तिखुंटे में बंध कर रह गया – घर, स्कूल, दुकान. खेलकूद बंद, हमजोलियों से मिलना बंद और सबसे बढ़ कर पतंगबाजी बंद. उसे पतंग उड़ाने का बहुत शौक था.
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