Re: मेरी कहानियाँ / दत्तक पुत्र
पहले तो लाला गुस्से में बोलते ही बोलते थे, लेकिन पिछले कुछ माह से हाथ भी उठाने लगे थे. कभी कान उमेठना, बांह पकड़ कर खींचना, गाल में चुटकी काटना आदि आम बातें थीं. अब थप्पड़बाजी पर भी आ गये थे. जब जी में आया जड़ दिया. वीजू घर पर आता तो ललाइन के सामने खूब रोता. कहता,
“चाची, देखो चाचा मुझ पर सारा दिन कितना गुस्सा करते हैं. मैं दूकान पर नहीं जाऊँगा चाची. मुझे दूकान पर मत भेजना.” और भी न जाने कितनी बातें कह जाता.
ललाइन उसका पक्ष ले कर बजरंगी लाला से कहा सुनी करती. उन्हें अपना व्यवहार फेरने की बात कहती. लाला जी अंत में यह कह कर बार को विराम लगाने की कोशिश करते, “रमेश की मां, पक्की ठीकरी में अब क्या जोड़ लगेगा. मैं नहीं जानता कि मैं ऐसा क्यों करता हूँ. लेकिन अब यह निश्चित है कि मेरे जीते जी तो अब यह दोष जाने वाला नहीं.”
वीजू परेशानी में चाची से कह देता कि उसे उसके मां बाप के यहां भेज दें. किन्तु बचपन से ही वह यहां आ गया था. अतः अपने मां बाप के प्रति भी वह निरपेक्ष ही रहा था. फिर भी उसे इस विचार से एक आशा की किरण फूटती दिखाई पड़ती.
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