09-09-2013, 08:13 PM
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मेरी कहानियाँ / एक टुकड़ा मौत
मेरी कहानियाँ / एक टुकड़ा मौत
(1)
“दादा जी ....”
“आओ बेटा अशोक .... यहीं आ जाओ ...” अशोक ने देखा कि दादा जी फुलवारी में पानी लगा रहे हैं.
“अरे दादा जी, ये किन्हें पानी लगा रहे हैं? इन जंगली पौधों को. आप फूलों के पौधे लगाइए न.”
“अब फूल के पौधे नहीं लगाए जाते मुझसे. अब तो जो पेड़ पत्ते अपने अप ही उग आते हैं उन्हीं की देखभाल कर लेता हूँ.”
“आप फूल क्यों नहीं उगाते? मैं लगाऊंगा. मैं माली से आपके लिए बीज लाऊंगा. दादा जी आपकी मुर्गियां कहाँ हैं?”
“बेटा, उन्हें मैंने दड़बे में बंद कर दिया है. परसों बिल्ली ने एक मुर्गी को खा लिया था न इसलिए इनको अब जल्दी बंद कर देता हूँ.”
“दादा जी, ये बिल्लियाँ भी कितनी खराब होती हैं. रोज रोज मुर्गियां खा जाती हैं. दूध भी गिरा जाती हैं ... “
“हाँ, ये बिल्लियाँ बड़ी खराब होती हैं, बेटा. बहुत खराब.” दादा जी ने उसकी बात पर सहमती व्यक्त करते हए कहा.
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