मेरी कहानियाँ / क्या समझा था क्या निकला?
मेरी कहानियाँ / क्या समझा था क्या निकला?
एक सिद्ध पुरुष थे. उनके भक्त उन्हें ईश्वर का अवतार मानते. वे हवा में हाथ उठाते और उनके हाथ में बहुत आश्चर्यजनक रूप से वस्तुएं प्रगट हो जातीं जैसे फूल, फल, हीरे, विदेशी घड़ियाँ और करेंसी नोट इत्यादि.
कुछ लोग ख़ुफ़िया तौर पर सिद्धपुरुष के जीवन की छानबीन सूक्ष्मता से कर रहे थे. उन लोगों को सिद्धपुरुष के बहुत से क्रिया-कलाप रहस्यमय प्रतीत हए.
अन्ततः, ख़ुफ़िया रिपोर्टों के प्रकाश में सिद्धपुरुष के आश्रम पर रेड पड़ गयी. वहां बहुत से तस्कर भाई और उनका तस्करी का कुछ माल बरामद हुआ. भक्तों के साथ सिद्धपुरुष को भी हिरासत में ले लिया गया.
अखबारों में उनके कारनामों के बारे में पढ़ पढ़ कर उनके अधिकतर भक्त और उन्हें अवतार मानने वाले सज्जन बहुत लज्जा का अनुभव करते. सोचते – क्या समझा था, क्या निकला.
पुलिस ने एक सप्ताह का रिमांड ले लिया. सिद्धपुरुष किसी से कुछ नहीं बोले. रात में उन्हें पुलिस लॉक-अप में ही रखा गया.
अगली सुबह तहलका मच गया. सिद्धपुरुष अपने सैल में नहीं थे. गेट पर ज्यों का त्यों ताला लटका हुआ था. कहीं पर सींखचे काटे जाने का भी चिन्ह नहीं था. फिर क्या हुआ? धरती निगल गई या आसमान खा गया? क्या वे वास्तव में सिद्ध पुरुष थे?
उनके भक्त पुनः स्वयं को लज्जित अनुभव कर रहे थे – क्या समझा था, क्या निकला?
**
|