Re: अघोषित आलसी का इकबालनामा
और मैं यहाँ ....
अपने घर में....
जहाँ सास-बहु के रिश्तों की सनक
नहीं देखने देती राष्ट्रीय नेताओं की हरकत....
कसमकसा रहा हूँ ...
उस मजदूर का, मरघट का और अघोरी का
धुंवा अंदर भर रहा हूँ..
विद्रोह दबा रहा हूँ...
अग्नि अंदर ही अंदर सुलगा रहा हूँ.
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