Re: मुहावरों की कहानी
सावन के अंधे
(इन्टरनेट से)
पिछले दिनों जब फेसबुक पर अकल की मारी एक कमसिन सी दिखने वाली फेसबुकिया मित्री ने चैट करते हुए मुझे वेलेनटाइन डे की बधाई दी तो मेरी बत्तीसी मेरे मुंह से बाहर आते-आते रह गई। मेरे लिये यह अजब-अनूठा अनुभव था। जीवन में कभी भी वेलेनटाइन डे जैसे खास अवसरों पर इस तरह के आफरनुमा बधाई से मैं सदा ही अछूता रहा हूं। कहना न होगा कि जब तक इन अवसरों व बधाईयों का कुछ अर्थ समझ में आता तब तक सिर के बाल उजड़ने व बत्तीसी मुंह से बाहर आने को आतुर हो चुकी थी। पर कहते हैं कि बंदर लाख बूढ़ा हो जाये, गुलाटी लगाना नहीं छोड़ सकता। वही हाल हम मर्दों का है।
अंतिम अवसर का लाभ भला कौन उठाना नहीं चाहता। वह भी ऐसा व्यक्ति जिसने ऐसे अवसरों को अपनी नादानी व अनभिज्ञता के चलते सदा खोया ही खोया हो। जीवन भर भले ही हमने कोई घास न खोदी हो पर बुढ़ापे की ओर लेफ्ट राइट करते हुए अंदर का मर्द उस दिन अंततः जाग ही उठा। मैंने बधाई देने वाली फेसबुकिया मित्री के कुछ और करीब आने की चाहत में कांपते हाथों से व डरते-डरते उसे बधाई तो दी ही चैट बाक्स में उसे ‘आई लव यू’ लिखने की जुर्रत भी कर डाली।
उस कुआंरी कन्या (उसकी फेसबुक प्रोफाइल के अनुसार) से लगभग आधे घंटे तक पूरी बराबरी से वैलेनटाइन डे सेलीबरेट करने के बाद अचानक बीच-बीच में उस कन्या द्वारा स्त्रीलिंग से बिछड़कर पुर्लिंग में बात करने पर दिमाग को कुछ खटका लगा। और मुझे यह बात समझते देर न लगी कि कोई अक्ल का बादशाह मेरी पहले से ही बुझ चुकी भावनाओं से खेलना चाहता है। मैं अपने अनेक करीबियों से फेसबुक पर फेक प्रोफाइल के ऐसे अनेक किस्से पहले भी सुन चुका था, फिर भी ‘दिल है कि मानता नहीं’ के कारण मैं काफी समय तक बेवकूफ बनता रहा।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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