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Originally Posted by amit_tiwari
सूत्र का शीर्षक एक काफी कही सुनी जाने वाली कहावत है किन्तु सूत्र का उद्देश्य धर्म को चुनौती देना या देवी गीत लिखना नहीं है |
मेरे अपने अध्ययन में मैंने हिन्दू धर्म को धर्म से बढ़कर ही पाया है |
अब इसे सनातन धर्म कहा जाता था आदि आदि इत्यादि सभी को पता है | उस सबसे अलग कुछ बातें हैं जो मन जानना चाहता है, दिमाग समझना चाहता है और अबूझ को पाने की लालसा तो होती ही है |
हिन्दू धर्म की कुछ ऐसी बातें हैं जो बेहद अछूती हैं जैसे ;
- हमारे धर्म में इतने सारे देवता हैं, इनका प्रादुर्भाव कहाँ से हुआ ?
- इतने वेद पुराण हैं, इनका धर्म के अस्तित्व, जन्म, विकास और हमारे जीवन से क्या सम्बन्ध है !
- रामायण, महाभारत आखिर क्या हैं और क्यूँ हैं ?
- द्वैतवाद, अद्वैतवाद, अघोरपंथ, नाथपंथ, सखी सम्प्रदाय, शैव, वैष्णव या चार्वाक इनका सबका अर्थ क्या है? इनका अस्तित्व है या नहीं और यदि है तो एकसाथ कैसे बना हुआ है ?
- क्या हिन्दू धर्म आज के भौतिक युग में प्रासंगिक है ? और किस सीमा तक है ?
ऐसे अनगिनत प्रश्न हैं जिन पर कुछ विचार मेरे पास हैं, बाकी सबसे सुनने की अभिलाषा है अतः यथासंभव योगदान देते चलें |
नोट : देवीगीत, आरती, भजन, किसी बाबा की कथा या कही और का लेख ना छापें |
यहाँ मैं विचारों का समागम, संगम देखना और करना चाहता हूँ जिनका लेखक का अपना होना अनिवार्य है अतः भावनात्मक उत्तर प्रतिउत्तर ना करें |
-अमित
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मित्र अमित तिवारी जी, नमस्कार. मित्र.. आपने एक बहुत ही ज्ञानवर्धक सूत्र का निर्माण किया है. मुझे आशा है की कोई भी सदस्य इसको अन्यथा नहीं लेगा.
मित्र, मेरे अल्पज्ञान के अनुसार मैं हिन्दू धर्म के या किसी अन्य धर्म के बारे में विषेश तो नहीं जनता लेकिन जहाँ तक इतने अधिक देवी देवताओं को पूजने के विषय में है तो मित्र .. मेरा मानना यह है की पुराने ज़माने में मनुष्य सभी वस्तुओं में भगवन का रूप देखता था. सूर्य, चंद्रमा, प्रथ्वी.. यहाँ तक की जल, अग्नि , वायु, आकाश ,आकाशी बिजली और वर्षा तक जैसी प्रक्रिया में भगवान का रूप देखा जाता था. और उन्हें पूजा भी जाता था. मनुष्य उस ज़माने में कण कण में भगवान् देखते थे इसी के परिणाम स्वरुप हिन्दू धर्म में असंख्य देवी और देवताओं को पूजा जाता है. प्रत्येक दिन के अलग देवी देवता होते हैं. सभी प्राकर्तिक क्रियाओं के पीछे किसी देवी या देवता का चमत्कार माना जाता है. लेकिन यदि अंधविश्वास की हद तक यह किया जाए तो गलत है. नहीं तो किसी हद तक देखा जाए तो यह सही भी है .. और पूजन करने वाले को इसका लाभ भी मिलता है. इसके द्वारा वह बुराइयों से दूर रहता है. उसे डर रहता है की मेरे द्वारा किये गए किसी भी गलत कार्य से कोई न कोई देवी या देवता रुष्ट हो सकते हैं.
कुल मिला कर ईश्वर को मानना तथा नियम के साथ पूजा करना (अन्धविश्वास नहीं) मानव जाती के लिए लाभदायक ही है. जिस प्रकार एक किसान बीज बोने से पूर्व अपने खेत की तथा हल की पूजा करता है ..क्योंकि वही उसका अन्नदाता है. इसी प्रकार देखा जाए तो 'सूर्य देवता' वास्तव में मानवजाति ,वनस्पति तथा सम्पूर्ण प्रथ्वी के सभी जीवों के पालनहार हैं. यदि हम उनकी पूजा करते हैं या प्रतिदिन सुबह उनको जल अर्पित करते हैं तो क्या गलत है?
कृपया अन्य सदस्य भी अपने कीमती विचार रखें.
धन्यवाद.