Re: कहानी: सखी
कहानी: सखी
"हम ना लौटा सकीले चोरावल माल।"
"त ठीक बा, मत जाईं। हमहीं जा तानी कहीं ढूब-धस के मर जायेब।"
"का अनाब-सनाब बोलत रहेलू! कवनो पता ठेकान रही तबे नूँ केहू लौटाई!"
चमेली अटइची खोलली त लाखन रूपिया आ खेदारू संघे फूला के फोटो देख के चिहा गइली!
"अरे! ई त सखी के अटइची ह!"
"कवन सखी!"
"अरे उहे! जीनके ससूर के एक्सीडेंट हो गइल रहे, ओइदिने जहिया उनकर बिदाईरहे। उनके ससूर के दवाई में ढेर करजा हो गइल रहे, आ खेदारू कसम खइले रहलेंकि जबले उ करजा ना चुकइहें तबले अपना मेहरारू से देहिं ना छुअइहें।"
"अच्छा ऊ! जब तहार खुशी येही में बा, त चलअ रूपिया लौटा आइल जा। अब तहरा खुशी से बढ़ के रूपिया नइखे नू!"
चमेली आ मोहन पइसा ले के खेदारू घरे पहुँच गइल लो। खेदारूओ जब पता ना लगा पवलें त
हार-पाछ के घरे आ गइलन। घरे मोहन के बइठल देखलें त उनके जीव में जीव परल। फूला से
कवनो मेहरारू हँस हँस के बतिआवत रहे आ उनके बाबू जी से मोहन। खेदारू लगे आ गइलन
"का हो तू आ गइलअ!"
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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