Re: मुहावरों की कहानी
मुहावरों वाली कथा (7)
पत्नी बोली: जब नहीं आता तो न लिखो. उतने ही पैर पसरो,जितनी लम्बी चादर हो. लिखते समय पैन पर इतना जोर न लगाओ कि वह टूट ही जाए. पर तुमने तो मेरी कोई भी बात न मानने की कसम चबा कर खाई हुई है. कान में हमेशा तेल डाले रहते हो. तुम्हारे कान पर तो जूं तक नहीं रेंगती. मेरी बात अगर मानी होती तो आज बड़े सुखी होते. खुद को कुछ पता नहीं है, बेचारे पाठकों को क्या समझाओगे. बसी नहीं ससुराल नसीहत दे सखियन को. घर में नहीं हैं दाने अम्मा चली भुनाने. आजकल जिसकी भलाई करो वही काटने को दौड़ता है हम तुम्हारी सेवा में आकाश=पाताल एक किये देते हैं,पर एक तुम हो,जो हमें ऑंखें दिखाते रहते हो. भले आदमी, एक मैं ही हूँ ,जो तुम्हारे साथ काटती हूँ. कोई दूसरी होती तो कब की भाग खड़ी होती.
बात तो सच ही है.हम तो बगलें झाँकने और हाथ मलने लगे.हाथ कंगन को आरसी क्या.हम तो यह सुन कर चारों खाने चित्त हो गये.सिट्टी पिट्टी गम हो गयी.काटो इओ खून नहीं.पर हारिये न हिम्मत बिसारिये न राम.
(क्रमशः)
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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