Re: इधर-उधर से
अभिमान और नम्रता
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एक बार नदी को अपने पानी के प्रचंड प्रवाह पर घमंड हो गया नदी को लगा कि ...
मुझमें इतनी ताकत है कि मैं
पहाड़, मकान, पेड़, पशु, मानव आदि सभी को बहाकर ले जा सकती हूँ
एक दिन नदी ने बड़े गर्वीले अंदाज में समुद्र से कहा ~ बताओ ! मैं तुम्हारे लिए क्या-क्या लाऊँ ?
मकान, पशु, मानव, वृक्ष जो तुम चाहो, उसे ...मैं जड़ से उखाड़कर ला सकती हूँ.
समुद्र समझ गया कि ...
नदी को अहंकार हो गया है
उसने नदी से कहा ~यदि तुम मेरे लिए कुछ लाना ही चाहती हो, तो ...थोड़ी सी घास उखाड़कर ले आओ.
नदी ने कहा ~ बस ... इतनी सी बात. अभी लेकर आती हूँ. नदी ने अपने जल का पूरा जोर लगाया पर ... घास नहीं उखड़ी नदी ने कई बार जोर लगाया*,लेकिन ...असफलता ही हाथ लगी आखिर नदी हारकर ... समुद्र के पास पहुँची और बोली ~ मैं वृक्ष, मकान, पहाड़ आदि तो उखाड़कर ला सकती हूँ. मगर जब भी घास को उखाड़ने के लिए जोर लगाती हूँ, तो वह नीचे की ओर झुक जाती है और मैं खाली हाथ ऊपर से गुजर जाती हूँ.
समुद्र ने नदी की पूरी बात ध्यान से सुनी और मुस्कुराते हुए बोला ~ जो पहाड़ और वृक्ष जैसे कठोर होते हैं,
वे आसानी से उखड़ जाते हैं.किन्तु ...घास जैसी विनम्रता जिसने सीख ली हो,
उसे प्रचंड आँधी-तूफान या प्रचंड वेग भी नहीं उखाड़ सकता।
जीवन में खुशी का अर्थ
लड़ाइयाँ लड़ना नहीं,
... बल्कि ...
उन से बचना है कुशलता पूर्वक पीछे हटना भी अपने आप में एक जीत है
... क्योकि ...
अभिमान* ~ फरिश्तों को भी शैतान बना देता है,
... और ...
नम्रता ~ साधारण व्यक्ति को भी फ़रिश्ता बना देती है।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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