Re: कुतुबनुमा
अफसर के अपहरण से खुली दावों की पोल
छत्तीसगढ़ में माओवादियों द्वारा एक आईएस अफसर के अपहरण ने भाजपा के नेतृत्व वाली रमन सिंह सरकार के इस दावे की पोल खोल दी है कि राज्य में सब कुछ ठीक चल रहा है और सरकार नक्सली हिंसा से कड़ाई से निपट रही है। इस घटना से साबित हो गया है कि राज्य में न तो खुफिया तंत्र अपनी भूमिका को ढंग से निभा पा रहा और न पुलिस नक्सलियों के मामले में गंभीर दिख रही है वरना क्या कारण है कि माओवादी आला पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों के बीच से एक आईएएस अफसर को राइफल और बंदूक की नोक पर उठा ले जाने की हिमाकत कर गए और सभी अफसर या तो छुप गए या केवल घटना को देखते भर रहे। यह हालत तो तब है, जब केन्द्र सरकार के गृह मंत्रालय ने खुफिया सूचना के बाद तीन-तीन पत्र भेज कर राज्य सरकार को आगाह किया था कि माओवादी ओडिसा में विधायक के अपहरण के बाद छत्तीसगढ़, खासकर राज्य के बस्तर अंचल में कोई बड़ी वारदात कर सकते हैं, लेकिन राज्य के खुफिया विभाग ने केन्द्र की सूचना की अनदेखी कर दी और उसी का नतीजा था कि माओवादियों ने शुक्रवार को संसदीय सचिव के काफिले पर हमला किया और शनिवार को बस्तर जिले में कलेक्टर को ही अगवा कर ले गए। इसमें राज्य सरकार की कोताही खुलकर सामने आ गई है। कुछ दिनों पहले सरकार ने वाहवाही लूटने के इरादे से ग्राम सुराज अभियान शुरू किया था, तब मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने भी आगाह किया था कि सरकार को अभियान रूपी यह नाटक बंद कर वरिष्ठ अधिकारियों की सुरक्षा पर गौर करना चाहिए, लेकिन रमन सिंह सरकार ने इसे भी नजरअंदाज कर दिया और कलेक्टर के अपहरण के बावजूद हठधर्मिता दिखाते हुए घोषणा की कि ग्राम सुराज अभियान जारी रहेगा। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि यह घटना राज्य सरकार की ढिलाई का नतीजा है। अब भी समय रहते सरकार को चेत जाना चाहिए और माओवादियों के बाहुल्य वाले इलाकों में लोगों की दयनीय दशा को संभालने के ठोस कदम उठाने चाहिए। राज्य सरकार का यह तर्क एकदम बेमानी है कि माओवादी या नक्सली हिंसा के खिलाफ केन्द्र द्वारा मदद से ही कुछ हो सकता है। आखिर राज्य के लोगों की सुरक्षा का जिम्मा तो राज्य सरकार पर ही है।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
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