Re: कुतुबनुमा
सोशल मीडिया को अब गंभीरता दिखानी होगी
सभी जानते हैं कि हमारे लोकतांत्रिक देश भारत में सभी को अपने विचार व्यक्त करने की पूरी आजादी है। संविधान में भी इसका उल्लेख है और अभिव्यक्ति की आजादी को सर्वोपरि माना गया है, लेकिन इस आजादी के यह मायने तो नहीं है कि हम इसका सदुपयोग करने की बजाय दुरूपयोग करने लग जाएं। यह ध्यान तो रखना ही होगा कि इस आजादी के सहारे हम कहीं उच्छृंखल न हो जाएं। आम आदमी के साथ- साथ यह बात मीडिया पर भी लागू होती है कि वह अभिव्यक्ति की आजादी की अपनी जिम्मेदारियों के दायरे में रख कर ही काम करे, लेकिन पिछले दिनों जो सामने आया, उससे यह साफ हो गया कि मीडिया, खास कर सोशल मीडिया ने इस सहूलियत का बेजा फायदा उठाया और अदालती आदेश तक की अनदेखी कर डाली। सोशल मीडिया में लोगों, संगठनों, धर्मों और समुदायों को बदनाम करने के लिए इसका दुरुपयोग करने का नया चलन शुरू हो गया है। जाहिर है जब इस तरह की घटनाएं बढ़ेंगी, तो लोगों का भरोसा धीरे-धीरे मीडिया पर से भी उठने लगेगा, जबकि देश में मीडिया को जानकारी का सबसे सशक्त माध्यम माना जाता है। यही कारण था कि काटजू को केन्द्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी को पत्र लिख कर यह आग्रह करने का बहाना मिल गया कि सरकार को मीडिया की आजादी को जिम्मेदारियों से जोड़ने तथा सोशल मीडिया का दुरुपयोग लोगों और संगठनों को बदनाम करने से रोकने के तरीके तलाशने के लिहाज से विशेषज्ञों का एक दल बनाना चाहिए। यह वजह एक सीडी के सोशल मीडिया पर प्रसार के कारण पैदा हुई, जिसमें सीडी बनाने वाले तक ने यह स्वीकार किया कि उच्चतम न्यायालय के एक प्रतिष्ठित वरिष्ठ वकील और संसद सदस्य को बदनाम करने तथा एक केंद्रीय मंत्री को धमकाने के लिए इसमें छेड़छाड़ की गई है। ऐसे में सोशल मीडिया पर नजर रखने के लिहाज से कानून बनाने की वकालत करने वाले काटजू के इस तर्क में दम नज़र आने लगती है कि जब तक सोशल मीडिया पर कुछ लगाम नहीं कसी जाती, तब तक भारत में किसी की प्रतिष्ठा सुरक्षित नहीं रहेगी। निश्चित रूप से निरन्तर बढ़ती जा रही इस समस्या से निपटने के रास्ते तलाशने के लिए सरकार को विधि एवं तकनीक विशेषज्ञों की एक टीम तो बनानी ही चाहिए और अगर यह लगता है कि इस पर रोक अनिवार्य है, तो सरकार को इस तरह की आपत्तिजनक सामग्री को सोशल मीडिया की साईट से हटाने के लिए उचित कानून बनाने की प्रक्रिया शुरू करनी चाहिए। सोशल मीडिया को भी खुद इसमें आगे आकर पहल करनी चाहिए और जो सामग्री वह प्रसारित करने जा रहा है, पहले उसके गुण-दोष को उसे खुद पहचानना होगा। साथ ही यह भी ध्यान में रखना होगा कि कहीं वह ऐसी कोई सामग्री अपने उपभोक्ता को नहीं परोस दे, जिसके चलते किसी के निजी जीवन पर ही आंच आ जाए। सोशल मीडिया को इस विषय पर अपने मकसद भी सार्वजनिक करने होंगे, ताकि लोगों में किसी तरह का भ्रम न फैले और वह उसका उपयोग केवल जानकारी हासिल करने तक ही सीमित कर सकें। उम्मीद की जानी चाहिए कि सोशल मीडिया गंभीरता से इस मुद्दे पर विचार करेगा।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
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