Re: कुतुबनुमा
सामने आई नीतीश की दोहरी चाल
अब इसे गिरगिट की तरह से रंग बदलना कहें या सोंची समझी सियासी चाल कि कल तक गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को फूटी आंख नहीं सुहाते थे, उन्हीं मोदी से नीतीश मेलमिलाप की पींगें लड़ाते दिख रहे हैं। शनिवार को राजधानी दिल्ली में प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में हुई एनसीटीसी पर सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बैठक में जिस तरह से नीतीश कुमार ने कैमरों की मौजूदगी में न सिर्फ मोदी से हाथ मिलाया, बल्कि काफी देर तक उनसे बतियाते भी रहे तो यह एकदम साफ हो गया कि दोनों ही नेता अपने-अपने मकसद को कहीं न कहीं पूरा करने के लिए अपने पुराने गिल-शिकवे दूर कर राजनीति की नई गोटियां फिट करने में लगे हैं। हालांकि इसे दूर के ढोल सुहावने वाली कहावत के रूप में ही लिया जा सकता है कि दोनों को आगामी लोकसभा चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री पद की दावेदारी की संभावनाएं नजर आ रही हैं। राजनीतिक क्षेत्र में वक्त के साथ ऊंट किस करवट बैठेगा, यह भविष्यवाणी तो कम से कम कोई भी नहीं कर सकता, लेकिन जिस तरह से अब तक धर्मनिरपेक्षता की चादर ओढ़ कर घूम रहे नीतीश कुमार ने सार्वजनिक तौर पर मोदी से मिलकर उस चादर को हटा फैंका हैं, उससे नीतीश की दोहरी चाल का तो पर्दाफाश हो ही गया है, मोदी को बार-बार सांप्रदायिक कहने वाले नीतीश इस मेलमिलाप के बाद बेनकाब भी हो गए। यह वही नीतीश हैं, जो मोदी के साथ फोटो खिंचवाने से भी परहेज करते रहे हैं और जब बिहार में विधानसभा चुनाव हुए थे, तो उन्होंने मोदी की सांप्रदायिक छवि के चलते ही उन्हें राज्य में चुनाव प्रचार से अलग रखा था। नीतीश यह भलीभांति जानते हैं कि आने वाले लोकसभा चुनाव में यदि उन्हें केन्द्र की राजनीति की तरफ रुख करना है, तो उन सिद्धान्तों को तो ताक पर रखना ही होगा, जिन्हें लेकर वे अब तक स्वच्छ राजनीति का ढिंढोरा पीटते रहे हैं। हो सकता है कि उन्हें उन लोगों का भी साथ लेना पड़ जाए, जिन्हें वे अब तक देखना भी पसंद नहीं करते थे। जो भी हो नीतीश ने सार्वजनिक तौर पर मोदी से नजदीकियां दिखा कर यह साबित तो कर ही दिया कि अपने राजनीतिक हित के लिए वे किसी भी सीमा तक जा सकते हैं, फिर भले ही उन्हें अपनी विचारधारा से ही समझौता क्यों न करना पड़े।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
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