68 वर्ष स्त्रियों की आजादी के
यूँ तो सामंती जकड़नों और स्त्रियों के प्रति पितृसत्तात्मक रूढिवादी मूल्यों की जड़ें आजादी के पहले ही दरकने लगी थीं, लेकिन आजाद भारत में यह और तेजी के साथ टूटी हैं। स्त्रियों ने उन सभी मोर्चों पर अपनी उपस्थिति दर्ज की है, दो दशक पहले जिसकी कल्पना भी असंभव थी। हालाँकि ये परिवर्तन आँखें मूँदकर सिर्फ गर्व किए जाने के योग्य हों, ऐसा नहीं है। उपलब्धियों का दूसरा चेहरा स्त्री के वस्तुकरण, उसे उत्पाद और भोग की वस्तु बना दिए जाने की शक्ल में भी सामने आया है, लेकिन इससे उपलब्धियों का वजन कम नहीं हो जाता।
Last edited by jai_bhardwaj; 05-05-2013 at 07:30 PM.
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