Re: चाणक्यगीरी : निर्वहण-अंश
चाणक्य के हरी झण्डी दिखाने के कारण नाराज़ विद्योत्तमा ने मालव देश के राजपत्र में लिखा- 'मैंने कुत्ते को छोड़ दिया, क्योंकि कुत्ता बदल गया!'
मालव देश के राजपत्र में प्रकाशित घोषणा की सूचना मिलते ही चाणक्य के कान खड़े गए, क्योंकि कुत्ता छोड़ने की घोषणा करके विद्योत्तमा ने गुप्त रूप से चाणक्य से ब्रेकअप करने की घोषणा की थी। इसका अर्थ स्पष्ट था- मौर्य देश के गुप्तचर विभाग द्वारा जारी सूचना झूठी थी अौर कालिदास की वापसी नहीं हुई थी। एक यक्ष प्रश्न और था- यदि कालिदास की वापसी नहीं हुई थी तो विद्योत्तमा अजूबी का प्रोमोशन क्यों कर रही थी? इसके पीछे क्या राज़ था? क्या वाकई विद्योत्तमा को कोई असाध्य बीमारी थी? इन सबका उत्तर जानने का एक ही उपाय था- वह यह कि विद्योत्तमा की इच्छानुसार अजूबी से इश्क़ लड़ाया जाए और विद्योत्तमा की निगरानी की जाए।
चाणक्य की नज़रों में बीमार विद्योत्तमा को बीमारी के कारण दिन-प्रतिदिन दुबला होना चाहिए था, किन्तु विद्योत्तमा दुबले होने के स्थान पर मोटी होती जा रही थी। विद्योत्तमा को दिन-प्रतिदिन मोटा होता देखकर चाणक्य समझा कि विद्योत्तमा को कोई अनोखी बीमारी है जिसके कारण विद्योत्तमा मोटी होते-होते एक दिन मर जाएगी। मौर्य देश के राजवैद्यों अौर राजहकीमों ने भी 'मोटा होकर मरने वाली अनोखी बीमारी' के बारे में अपनी अनभिज्ञता प्रकट की तो चाणक्य विद्योत्तमा की अनोखी बीमारी देखकर और अधिक चिन्तित अौर दुःखित हो गया।
होली पर चाणक्य की मैसूर-यात्रा (इसे चाणक्यगीरी में विस्तृत रूप से लिखा जा चुका है।) का कार्यक्रम स्थगित होते ही अजूबी की संदेहास्पद गतिविधियों को देखते हुए महागुप्तचर वक्रदृष्टि ने मौर्य देश के भूतपूर्व न्यायाधीश लाल बहादुर सिल अौर न्यायधीश बहादुर लाल बट्टा की अध्यक्षता में 'सिल-बट्टा जाँच समिति' गठित की। न्यायाधीश एल० बी० सिल और बी० एल० बट्टा को मैसूर में गधे पर बैठकर इधर-उधर घूमकर जासूसी करते देखकर अजूबी के छक्के छूट गए और उसने तुरन्त विद्योत्तमा को इस बारे में सूचित किया। विद्योत्तमा ने हँसते हुए कहा- 'चिन्ता करने की कोई बात नहीं, क्योंकि षड़यन्त्र के बारे में हम तीन लोगों के अलावा चौथा अौर कोई नहीं जानता।' अजूबी संतुष्ट हो गई, किन्तु न्यायाधीश सिल-बट्टा बड़े ही जीवट किस्म के इन्सान थे। कैसा भी टेढ़ा मामला हो- पीसकर चटनी बना ही देते थे। दोनों ने द्रविड़ देश में बना विशेष दाना डालकर अजूबी और विद्योत्तमा का राजकीय कबूतर हैक करके असलियत का पता लगा ही लिया।
मैसूर में मामले की जाँच पूरी करके सिल-बट्टा समिति ने महागुप्तचर वक्रदृष्टि को रात बारह बजे अपनी रिपोर्ट सौंपी तो मौर्य देश में हड़कम्प मच गया। सिल-बट्टा समिति ने अपनी रिपोर्ट में 'मालव देश की राजज्योतिषी ज्वालामुखी की सलाह पर मैसूर में चाणक्य को मारने के लिए विद्योत्तमा ने अजूबी को दी थी सुपाड़ी' लिखकर तत्काल मैसूर और मालवदेश पर सैन्य कार्यवाही की संस्तुति की थी। सिल-बट्टा समिति की रिपोर्ट के अाधार पर महागुप्तचर वक्रदृष्टि ने आसमान में लाखों की संख्या में लाल रंग से रंगे कबूतर उड़ा दिए। आसमान में लाल रंग का कबूतर उड़ता देखकर सेनापति प्रचण्ड ने मौर्य देश की सेनाओं को बड़े पैमाने पर युद्ध का अभ्यास करने का आदेश दिया। महामंत्री राजसूर्य ने सम्पूर्ण मौर्य देश में हाई अलर्ट घोषित करते हुए द्रविड़ सम्राट त्रय सोलृन, सेरन, पाण्डियन को मैसूर पर शिकंजा कसने के लिए मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त की ओर से विशेष आपातकालीन राजाज्ञा जारी की।
मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त का विशेष आपातकालीन राजाज्ञा प्राप्त होते ही द्रविड़ देश में हड़कम्प मच गया और सोलृन, सेरन, पाण्डियन ने एक आपातकालीन सभा करके मैसूर पर शिकंजा कसने के लिए तीनों देशों की सेनाओं के एकल महासेनापति के रूप में ओट्रैक्कन्नु को नियुक्त किया। सात फिट लम्बा ओट्रैक्कन्नु एक आँख से काना था इसीलिए उसका नाम ओट्रैक्कन्नु पड़ गया था। ओट्रैक्कन्नु के बारे में कहा जाता था कि उसे चक्रव्यूह बनाकर लड़ने में महारथ हासिल था और वह अकेले पाँच हज़ार लोगों से लड़ सकता था।
महासेनापति ओट्रैक्कन्नु ने सोलृन, सेरन और पाण्डियन की विशाल सेनाअों के साथ मैसूर साम्राज्य की सीमाओं को सील करके मैसूर पर शिकंजा कसना शुरू किया तो मैसूर महाराजा दशवाहन (कृपया ध्यान दें- वस्तुतः उस समय मैसूर नंद अौर मौर्य साम्राज्य के अन्तर्गत ही था और मौर्य साम्राज्य के बाद ई०पू० 3 में शतवाहन मैसूर का महाराजा बना। अपनी कहानी के उद्देश्य को देखते हुए हमने यह कल्पना की कि शतवाहन के पूर्वज दशवाहन उस समय मैसूर के महाराजा थे।) के होश उड़ गए। भय से थर-थर काँपता हुआ दशवाहन मैसूर सीमा पर डेरा डाले ओट्रैक्कन्नु से भेंट करने के लिए कई सेवकों के साथ मैसूर बोण्डा और मैसूर पाक लेकर पहुँचा। ओट्रैक्कन्नु को प्रसन्न करने के लिए सिर पर घड़ा रखकर 'करकाट्ट' नृत्य करने वालों की टोली भी नृत्य करते हुए दशवाहन के साथ चल रही थी। दशवाहन को देखते ही ओट्रेक्कन्नु ने क्रोधपूर्वक उसका कॉलर पकड़कर हवा में तान दिया और गरजती हुई आवाज़ में कहा- 'चमगादड़ होकर तेरी इतनी हिम्मत? पर कतर दिए जाएँगे तेरे। फिर कभी न उड़ पाएगा। पता है न तुझे- एक बार पर कतर दिए जाने के बाद चमगादड़ के पर कभी नहीं उगते।'
दशवाहन ने हाथ जोड़कर थर-थर काँपते हुए कहा- 'ऐसी क्या गलती हुई हमसे? भुनगे को सज़ा देने के लिए इतनी बड़ी सेना लेकर आए हैं?'
द्रविड़ सम्राट त्रय के महासेनापति ओट्रैक्कन्नु ने क्रोधपूर्वक मैसूर महाराजा दशवाहन से कहा- 'नमकहराम, तुझे अच्छी तरह से पता है- द्रविड़ सम्राट त्रय हिज़ हाइनेस सोलृन, हिज़ हाइनेस सेरन और हिज़ हाइनेस पाण्डियन के अनुरोध पर नंद सम्राट धननन्दा और मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त ने मैसूर पर सिर्फ़ इसलिए कब्ज़ा नहीं किया जिससे हमें गर्म-गर्म मैसूर बोण्डा और मैसूर पाक खाने को मिलता रहे। मैसूर छोड़ने के एवज में मौर्य संस्थापक चाणक्य जब-तब द्रविड़ देश की यात्रा करके हमसे इट्लि, बूरी, बुरोट्टा, दोसै, अप्पम्, वडै, ऊत्तप्पम्, पोंगल, उप्पुमा और केसरी की दावत खाते रहते हैं।'
मैसूर महाराजा दशवाहन ने थर-थर काँपते हुए कहा- 'पता है। सब पता है। मैं नमकहरामी कैसे कर सकता हूँ? मैंने द्रविड़ सम्राट त्रय हिज़ हाइनेस सोलृन, सेरन, पाण्डियन की शान में कभी गुस्ताखी नहीं की। मैसूर से रोज़ गर्म-गर्म मैसूर बोण्डा अौर मैसूर पाक से भरे सैकड़ों रथ द्रविड़ सम्राट त्रय की सेवा में रवाना किए जाते हैं। फिर क्या गुस्ताखी हुई हमसे?'
ओट्रैक्कन्नु ने कहा- 'मुझे कुछ नहीं पता। हमें सिर्फ़ मैसूर पर शिकंजा कसने के लिए कहा गया है। आदेश मिलते ही हम ईंट से ईंट बजा देंगे। हो सकता है- मैसूर बोण्डा में मिर्च ज़्यादा हो गई हो या मैसूर पाक में चीनी कम हो गई हो! इसीलिए द्रविड़ सम्राट त्रय की गाज मैसूर पर गिरने वाली हो।'
दशवाहन ने घबड़ाकर कहा- 'कैसी बात करते हैं आप। हमारे राजकीय बावर्ची कोई आज से मैसूर बोण्डा अौर मैसूर पाक बना रहे हैं जो मिर्च अौर चीनी कम-ज़्यादा कर दें। आप खुद चखकर देख लीजिए।'
दशवाहन के संकेत पर साथ आए सेवकों ने मैसूर बोण्डा और मैसूर पाक से सजी थाल ओट्रैक्कन्नु के सामने कर दी। ओट्रैक्कन्नु ने मैसूर बोण्डा अौर मैसूर पाक खाते हुए कहा- 'वाह-वाह, बड़ा अच्छा और स्वादिष्ट बना है। कोई कमी नहीं है। फिर क्यों द्रविड़ सम्राट त्रय आपसे नाराज़ चल रहे हैं?'
महासेनापति ओट्रैक्कन्नु के साथ-साथ दशवाहन भी गम्भीरता के साथ विचारमग्न हो गया।
मौर्य देश में रातों-रात बड़े पैमाने पर युद्ध का अभ्यास शुरू होते ही किसी बड़े युद्ध की आशंका से मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त थर-थर काँपने लगे और वहाँ से फरार होने के लिए मूँगफली का ठेला लेकर राजमहल से बाहर निकले, किन्तु इस बार भी वाल्मीकि ने चापड़ लहराकर उन्हें राजमहल के अन्दर धकेल दिया। मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त मन ही मन 'मौर्य देश में डेमोक्रेसी बिल्कुल नहीं है। मूँगफली बेचने की मनाही है। जब देखो राजा बने रहो। यह भी कोई बात हुई!' भुनभुनाते हुए राजमहल के अन्दर जाकर चाणक्य अौर वाल्मीकि को मन लगाकर कोसने लगे और फिर अपना राजमुकुट ज़मीन पर पटक-पटक कर अपना गुस्सा उतारने लगे।
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