Re: चाणक्यगीरी : निर्वहण-अंश
मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त को राजमहल के अन्दर धकेलकर वाल्मीकि मौर्य देश में चल रही गड़बड़ी को सूँघने के लिए चाणक्य-निवास में जाकर छिप गए, क्योंकि उन्हें अच्छी तरह से पता था कि मौर्य सेना को हमले के लिए रवाना करने के लिए चाणक्य का आदेश लेने के लिए महागुप्तचर वक्रदृष्टि वहाँ ज़रूर आएँगे। वाल्मीकि ने जैसा सोचा था वैसा ही हुआ। थोड़ी ही देर में महागुप्तचर वक्रदृष्टि चाणक्य के सामने हाज़िर हुए और अपनी लंगोट में छिपाई सिल-बट्टा समिति की गोपनीय रिपोर्ट निकालकर चाणक्य को देते हुए मौर्य सेना को मालवदेश पर हमला करने के लिए रवाना करने के लिए आदेश की माँग की। चाणक्य ने सिल-बट्टा समिति की रिपोर्ट को सिरे से नकारते हुए महागुप्तचर वक्रदृष्टि की माँग को खारिज कर दिया अौर सिल-बट्टा समिति की रिपोर्ट की मिनी फ़ाइल पर 'अति गोपनीय' लिखकर अपनी लंगोट में छिपा लिया, क्योंकि मौर्य देश के सैन्य नियमानुसार गोपनीय फाइलों को महागुप्तचर वक्रदृष्टि अपनी लंगोट में छिपाकर चलते थे और अति गोपनीय फाइलों को चाणक्य अपनी लंगोट में छिपाकर चलते थे। सिल-बट्टा समिति की रिपोर्ट खारिज होते ही महागुप्तचर वक्रदृष्टि ने चाणक्य-निवास में बनाए हरे रंग से रंगे कबूतरों का दबड़ा खोल दिया अौर थोड़ी ही देर में आसमान में लाखों की संख्या में हरे रंग के कबूतर उड़ने लगे। आसमान में हरे रंग के कबूतर उड़ते हुए देखकर महामंत्री राजसूर्य ने मौर्य देश में लगे हाई अलर्ट को समाप्त करने की घोषणा करते हुए युद्ध का अभ्यास रोके जाने का आदेश पारित किया और द्रविड़ देश के लिए जारी मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त की आपातकालीन विशेष राजाज्ञा को वापस लेने की घोषणा की। मैसूर पर हमले की आशंका टलते ही द्रविड़ सम्राट त्रय सोलृन, सेरन, पाण्डियन ने चैन की साँस लिया और इस खुशी को ताड़ी के साथ प्याज़ और अण्डे का ऊत्तप्पम् खाकर मनाया। गर्म-गर्म स्वादिष्ट मैसूर बोण्डा और मैसूर पाक के रास्ते में आया बहुत बड़ा संकट जो टल गया था।
थोड़ी देर बाद महागुप्तचर वक्रदृष्टि ने चाणक्य से मौर्य महल में ठहरी भिखारिन विद्या के कारण चाणक्य की जान को खतरा बताया, क्योंकि विद्या अपने पास खंजर रखती थी। बदले में चाणक्य ने मौर्य देश के संविधान में 'विद्या को किसी हालत में गिरफ्तार न करने' का संशोधन करने का आदेश पारित करते हुए (इसे चाणक्यगीरी में पहले ही लिखा जा चुका है।) विद्या के नाम से छोटी तोप का लाइसेंस बनाकर छोटी तोप लेकर आने का आदेश दिया तो वाल्मीकि के कान खड़े हो गए- 'छोटी तोप तो सिर्फ़ राजा-महाराजाओं को उपहार स्वरूप दिया जाता है। कहीं ऐसा तो नहीं- भिखारिन विद्या के भेष में स्वयं महारानी विद्योत्तमा मौर्य महल में रह रही हो? और यह बात चाणक्य के अतिरिक्त और किसी को न पता हो!' वाल्मीकि का पारा सातवें आसमान पर पहुँच गया। विद्योत्तमा की इतनी हिम्मत? मौर्य देश में रहकर मेरे मित्र चाणक्य को जान से मारने की साजिश रचे! इतनी बड़ी साजिश रचने वाली विद्योत्तमा को ज़िन्दा छोड़ना खतरे से खाली नहीं। विद्योत्तमा का काम तमाम करना ही होगा। चाणक्य तो विद्योत्तमा के प्रेम में अन्धा हो गया है। कुछ दिखाई ही नहीं देता। इतनी बड़ी सिल-बट्टा समिति की रिपोर्ट को धूल समझकर रद्द कर दिया!
चाणक्य-निवास से बाहर आकर वाल्मीकि ने विद्योत्तमा का काम तमाम करने के लिए एक योजना बनाई और पानी वाला नारियल का ठेला मौर्य महल के सामने लगाकर चापड़ से काट-काटकर नारियल का पानी बेचने लगे। उनकी योजना थी- नारियल का पानी पीने के लोभ में विद्योत्तमा अवश्य आएगी अौर चापड़ से नारियल काटने के बहाने विद्योत्तमा का सिर एक ही वार में क़लम कर दिया जाएगा। समाचार-पत्रों में ज़्यादा से ज़्यादा यही छपेगा- 'मौर्य महल के सामने नारियल का पानी बेच रहे वाल्मीकि के चापड़ का निशाना चूकने के कारण नारियल की जगह मालव देश की महारानी विद्योत्तमा का सिर क़लम।'
रात दो बजे मौर्य महल के सामने वाल्मीकि को पानी वाला नारियल बेचते देखकर मौर्य महल में विद्या के भेष में रह रही विद्योत्तमा के कान खड़े हो गए। इतना बड़ा लेखक नारियल बेच रहा है? ज़रूर कुछ दाल में काला है। अपने संदेह की पुष्टि करने के लिए विद्योत्तमा ने खिड़की से वाल्मीकि से पूछा- 'क्या बात है, वाल्मीकि जी? रात दो बजे नारियल का पानी बेच रहे हैं?'
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