Re: वृतान्त
भाभीजी और बच्चे हम सारे लोग नोएडा पहुँचे.
*बहुत ज़्यादा रिक्वेस्ट करने पर गेट खुला*. भाई साहब ने उस *गेटकीपर के पैर पकड़ लिए*, बोले मेरी माँ है, मैं उसको लेने आया हूँ,
चौकीदार ने कहा क्या करते हो साहब,
भाई साहब ने कहा *मैं जज हूँ,*
उस चौकीदार ने कहा:-
*""जहाँ सारे सबूत सामने हैं तब तो आप अपनी माँ के साथ न्याय नहीं कर पाये,
औरों के साथ क्या न्याय करते होंगे साहब"*।
इतना कहकर हम लोगों को वहीं रोककर वह अन्दर चला गया.
अन्दर से एक महिला आई जो *वार्डन* थी.
उसने *बड़े कातर शब्दों में कहा*:-
"2 बजे रात को आप लोग ले जाके कहीं मार दें, तो
*मैं अपने ईश्वर को क्या जबाब दूंगी..*?"
मैंने सिस्टर से कहा *आप विश्वास करिये*. ये लोग *बहुत बड़े पश्चाताप में जी रहे हैं*.
अंत में किसी तरह उनके कमरे में ले गईं. *कमरे में जो दृश्य था, उसको कहने की स्थिति में मैं नहीं हूँ.*
केवल एक फ़ोटो जिसमें *पूरी फैमिली* है और वो भी माँ जी के बगल में, जैसे किसी बच्चे को सुला रखा है.
मुझे देखीं तो उनको लगा कि बात न खुल जाए
लेकिन जब मैंने कहा *हम लोग आप को लेने आये हैं, तो पूरी फैमिली एक दूसरे को पकड़ कर रोने लगी*
आसपास के कमरों में और भी बुजुर्ग थे सब लोग जाग कर बाहर तक ही आ गए.
*उनकी भी आँखें नम थीं*
कुछ समय के बाद चलने की तैयारी हुई. पूरे आश्रम के लोग बाहर तक आये. किसी तरह हम लोग आश्रम के लोगों को छोड़ पाये.
सब लोग इस आशा से देख रहे थे कि *शायद उनको भी कोई लेने आए, रास्ते भर बच्चे और भाभी जी तो शान्त रहे*.......
लेकिन भाई साहब और माताजी एक दूसरे की *भावनाओं को अपने पुराने रिश्ते पर बिठा रहे थे*.घर आते-आते करीब 3:45 हो गया.
👩 💐 *भाभीजी भी अपनी ख़ुशी की चाबी कहाँ है; ये समझ गई थी* 💐
मैं भी चल दिया. लेकिन *रास्ते भर वो सारी बातें और दृश्य घूमते रहे*.
👵 💐*""माँ केवल माँ है""* 💐👵
*उसको मरने से पहले ना मारें.*
*माँ हमारी ताकत है उसे बेसहारा न होने दें , अगर वह कमज़ोर हो गई तो हमारी संस्कृति की ""रीढ़ कमज़ोर"" हो जाएगी* , बिना रीढ़ का समाज कैसा होता है किसी से छुपा नहीं
अगर आपकी परिचित परिवार में ऐसी कोई समस्या हो तो उसको ये जरूर पढ़ायें, *बात को प्रभावी ढंग से समझायें , कुछ भी करें लेकिन हमारी जननी को बेसहारा बेघर न होने दें*, अगर *माँ की आँख से आँसू गिर गए तो *"ये क़र्ज़ कई जन्मों तक रहेगा"*, यकीन मानना सब होगा तुम्हारे पास पर *""सुकून नहीं होगा""* , सुकून सिर्फ *माँ के आँचल* में होता है उस *आँचल को बिखरने मत देना*।
इस *मार्मिक दास्तान को खुद भी पढ़िये और अपने बच्चों को भी पढ़ाइये ताकि पश्चाताप न करना पड़े*।
*धन्यवाद*!!!
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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