Re: " कबीर के दोहे "
कर गुजरान गरिबोंमें मगरूरी किसपर करतारे ॥
मट्टी चुन चुन मेहल बनायो लोक कहे घर मेरारे ।
ना घर तेरा ना घर मेरा चुरिया रहे बसेलरे ॥
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