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Originally Posted by malethia
क्या अमेरिका के सहारे आगे बढ़ना भारत की मजबूरी है ?
क्या हमारे पास कोई मजबूत नेतृत्व है और यदि नहीं है तो अना हजारे का रिकॉल का आप्शन सही है !
क्या हम अमेरिका के इशारो पर सिर्फ पाकिस्तान से शांति वार्ता ही करते रहेंगे ?
क्या अमेरिका से दोस्ती हमारे लिए फायदेमंद है या अमेरिका सिर्फ पाकिस्तान के लिए हमें इस्तेमाल करना चाहता है ?
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आपने एक महत्वपूर्ण सवाल उठाया है, मलेठियाजी। आप इजरायल और अमेरिकी संबंधों की कसौटी पर इसको देखें। दरअसल इसके लिए भारत की वोट बैंक की राजनीति जिम्मेदार है, वरना अब तक आप इजरायल की तरह अमेरिका के दाएं या बाएं हाथ होते और किसी चीन या पाकिस्तान की हिम्मत नहीं होती कि वे आपकी ओर किसी तरह की बद नज़र उठा भी सकें। यहां यह याद रखें कि मैं आपको अमेरिका का चमचा बनने के लिए नहीं कह रहा हूं, इसलिए कि आपके पास सोवियत संघ (अब रूस) का भी हमेशा समर्थन रहा है, जो इजरायल को नहीं है। आप इजरायल को देखें, वह सरे-आम मूंछों पर ताव देकर अमेरिका से अपनी बात मनवाता है, अगर आपके नेत्रित्व ने यही समझदारी शुरू से दिखाई होती, तो आज हम किसी और ऊंचाई पर होते। आज ही अमेरिका के एक लेखक द्वय की एक किताब ने रहस्योद्घाटन किया है कि 1962 में भारत-चीन के युद्ध के दौरान तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन ऍफ़ केनेडी ने चीन पर परमाणु हमला करने का इरादा किया था, इसलिए कि वे भारत के लोकतंत्र को कम्युनिस्ट चीन के हाथों पराजित होते देखना नहीं चाहते थे, किन्तु भारतीय नेतृत्व की कमजोरी और अमेरिकी चीन समर्थक लॉबी ने परिदृश्य बदल दिया। इसे क्या कहेंगे आप?