एहसान
बस एक मुलाकात का एहसान हो जाए ।
मुझे भी कुछ होने का गुमान हो जाए ।
सदियों से शायद तुम्हे जानता हुं मैं,
तुम्हे भी मेरी कुछ पहेचान हो जाए ।
जो दुनिया आज मुजे अनदेखा करती है,
तुम्हे देख मेरे साथ, वो भी हैरान हो जाए !
तुम जिसे दो कदम चलना कहती हो,
हो सकता है वह मेरी उडान हो जाए ।
पाना तुम्हें कभी मुमकीन ही नही,
यह समज़ना ओर भी आसान हो जाए।
फिर चाहे बाद में हम अन्जान हो जाएं,
बस एक मुलाकात का एहसान हो जाए ।
दीप
(4.5.15)