Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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Originally Posted by rajnish manga
यही सोच कर बुरे वक़्त को पूज लिया करता हूँ मैं
इसी बहाने दिल को अपने समझाना हो जाता है
दिल के इस दीवानेपन को आखिर आप कहेंगे क्या
अच्छी ग़ज़ल कहीं सुन ले तो दीवाना हो जाता है
(सुरेंद्र चतुर्वेदी)
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हमसफ़र आप जिसे अपना बना आये हैं
वो तो चाबी का खिलौना है चलेगा कितना
मुझको मिल जाये जो भगवान तो पूछूँ उससे
वो मुझे और परेशान करेगा कितना
(ज्ञानप्रकाश विवेक)
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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