Re: मैं भूखा हूँ भैया पहले रोटी का प्रबन्ध करो
अभिषेक जी, सेंट अलैक जी, जीतेन्द्र जी, सिकंदर जी व सोमबीर जी, रचना पढ़ने के लिये, प्रशंसा करने के लिये एवं विचाराधीन विषय पर अपनी मूल्यवान टिप्पणी देने के लिए आपका ह्रदय से आभारी हूँ. यह पंक्तियां स्वतः स्फूर्त हैं और मैं सोचता हूँ कि यह आज़ाद भारत में रहने वाले एक आम आदमी के ह्रदय की आवाज़ है जिसके सारे सपने टूट चुके हैं. यह अरण्यरोदन किसी हद तक सार्वकालिक हैं लेकिन इस सब का महत्व वर्तमान परिस्थितियों में और भी बढ़ गया है.
एक आम आदमी क्या चाहता है? सबसे पहले पेट भरने के लिये रोटी (बकौल मेकडूगल पहली मूल ज़रूरत) फिर कपड़ा और मकान. आज रोटी के भी लाले पड़े हुये हैं इस आम आदमी को. इसमें कोई शक नहीं कि हमारे देश ने आज़ादी के बाद के पैंसठ सालों में हर क्षेत्र में बहुत तरक्की की है. किन्तु आम आदमी को क्या मिला? सुरसा के खुले मुख की तरह बढते जाने वाले खर्च और सिकुड़ती आमदनी तथा सिकुड़ती मूल सुविधाएँ. क्या कारण है कि आम जन के लिये बनने वाली बड़ी बड़ी महत्वाकांक्षी योजनायें रेत की नदी में दफ़न हो जातीं हैं व सारे वेलफ़ेयर प्रोग्राम भ्रष्टाचार की गलियों में लूट लिये जाते हैं.
जीतेन्द्र जी, सेंट अलैक जी और अभिषेक जी, इन पंक्तियों ने यदि आप जैसे मनीषियों को उद्वेलित किया है तो इसका श्रेय हमारी साझी पीड़ा की इमानदारी को जाता है. धन्यवाद.
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