चाल ३
नवीन के पास अब सच में पचास हजार थे जो उसको सुदर्शन से मिले थे। उन पैसों से वह एक पुरानी बस्ती में किसी नाले के पास भाडे से एक शेड लेता है। उस में सांचा, कढाव, पीप, तेल, कच्चा सामान, चुल्हा वगैरह तैयार करता है। उस के पास अपने बाबुजी की दी गई डायरी तो थी ही जिस में साबुन का फोर्मुला लिखा था।
नवीन पहले तो खुद ही साबुन बनाता है, पैक करता है । फिर साईकिल पर रख कर एक शहर के दुकानदारों के पास ले जाता है। पहले दुकानदार ने साफ मना कर दिया। नवीन ने बडे ईत्मीनान से कहा की आप पैसे मत दें, अगर ग्राहक फिर से माल लेने आए तो ही पैसे दिजीएगा। एसे ही नवीन ने कई दुकानदारों को फ्री एक एक दर्जन साबुन थमाए। वे सभी आनाकानी कर रहे थे लेकिन अपनी मीठी वाणी और दलीलों से नवीन ने अपना पहले दिन का स्टोक खत्म कर ही दिया।