Re: Jabalpur & Indore (M.P.)
इन्दौर केन्द्रीय संग्रहालय
संग्रहालय के मुख्य द्वार से अन्दर घुसा तो देखा कि टिकट खिड़की बन्द है।मुख्य भवन के बाहर भी नाना प्रकार की सैंकड़ों मूर्तियां वहां पर सुसज्जित देख कर मैने कैमरा निकाला और बकौल नन्दन झा, न्रीक्षण-प्रीक्षण शुरु हो गया। एक सज्जन मेरे पास आकर बोले, कैमरे का टिकट ले लीजियेगा, अपना भी। अभी थोड़ी ही देर में टिकट काउंटर खुल जायेगा। मैने पूछा कि तब तक मैं क्या करूं? इंतज़ार करना पड़ेगा? वह बोला, “नहीं, नहीं, आराम से देखिये, जहां भी चाहें, फोटो खींचिये।मेन बिल्डिंग में भी बहुत कुछ है।रास्ता इधर से है।” धन्यवाद कह कर मैं बेधड़क इधर-उधर घूमता फिरता रहा और एक डेढ़ घंटे में पूरा संग्रहालय उलट-पुलट कर देख डाला।
इस संग्रहालय में वैसे तो छः वीथिकायें हैं पर मुझे हिंगलाज़गढ़ की परमार कालीन प्रतिमाओं वाली वीथिका सबसे अच्छी लगी।उससे भी बढ़ कर, आठ दस प्रतिमायें इटैलियन थींजो इन्दौर के राज परिवार की ओर से इस संग्रहालय को भेंट मिली हैं।इन इटैलियन और भारतीय कलाकारों द्वारा निर्मित मूर्तियों में मूल अन्तर ये है कि भारतीय कलाकारों द्वारा निर्मित मूर्तियों में शरीर रचना लगभग एक जैसी सी लगती है।चेहरे में भी बहुत अन्तर नहीं आता।अलंकरण से पता चलता है कि यह किस देवी – देवता – यक्ष – यक्षिणी की प्रतिमा है।नारी व पुरुष के अंग – प्रत्यंग की संरचना बहुत कलात्मक तो है पर काफी कुछ एक जैसी अनुभव होने लगती है। इनको देखते देखते जब थक जाओ और अचानक ग्रीक या इटैलियन प्रतिमाएं सामने आ जायें तो ताज़ा हवा का झोंका आ गया प्रतीत होता है। अर्वाचीन युग के अत्यन्त कलात्मक द्वार ऐसे के ऐसे उठा कर यहां प्रदर्शन हेतु रखे गये हैंजो इस संग्रहालय का बहुमूल्य हिस्सा हैं। दर्शकों एवं पर्यटकों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए प्लास्टर कास्ट (plaster cast) की प्रतिकृतियां भी यहां तैयार की जाती हैं और विक्रय हेतु उपलब्ध हैं।
उसके अलावा मध्यप्रदेश में हुए उत्खनन से मिली वस्तुएं वहां प्रदर्शित हैं।एक वीथिका (gallery) सिक्कों की भी थी, उसे देख कर भी अच्छा लगा। साढ़े दस बजे के करीब टिकट काउंटर वाले महोदय आये, मुझे टिकट दिये और चूंकि मैं उस समय तक लगभग पूरा संग्रहालय देख चुका था, मैने वहां से प्रस्थान किया।
चिड़ियाघर
बाहर निकल कर मैंबैंक की ओर वापिस जाने के लिये सड़क के उस पार जाना चाहता था पर road divider पर कट कुछ दूर था।पैदल ही आगे बढ़ना शुरु किया तो अपनी ही साइड में zoo का बोर्ड लगा मिला।सोचा, इसे भी क्यों नाराज़ किया जाये – चलो अन्दर चलते हैं।टिकट लेकर भीतर प्रवेश किया तो लगा कि यहां तो कितने भी घंटे घूमता रह सकता हूं। शेर, चीते, भेड़िये, नील गाय, मगरमच्छ, हाथी, हिरण, बारहसिंघे, मोर की अनेक प्रजातियां, नाना प्रकार की बतखें और उनकी प्रजाति के अन्य पक्षी वहां काफी अच्छे ढंग से रखेगये हैं। खास बात यह है कि उनको घूमने फिरने के लिये पर्याप्त स्थान उपलब्ध कराया गया है – बिल्कुल पिंजरे में बन्द तोते जैसी स्थिति नहीं है।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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