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Originally Posted by sikandar
बचपन खेल मे खोया
जवानी नीँद भर सोया
बुढ़ापा देखकर रोया
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इन तीन लाइनों में बहुत कुछ लिख दिया हे सिकन्दर भाई ९० परसेंट लोगो का यही हाल होता हे ! बचपन तो खेल खेल में ही निकल जाता हे और जवानी आने में मस्ती में चूर हो जाता हे जवानी मोज मस्ती और अयासी में निकाल देता हे ! और जब बुढ़ापे कि तरफ कदम रखता हे तो उसे एहसास होने लगता हे कि उसने क्या गलत किया और क्या अच्छा किया ! फिर वह बुढ़ापे को देख कर रोने लगता हे ! फिर वह अपने किये दोषो को छिपा कर अच्छी अच्छी बाते करने लगता हे !ताकि उसका बुढ़ापा सही गुजरे लोग उसको अच्छा समझने लगे ! और उसके साथ अच्छा व्यवहार करे ! जिंदगी का एक कटु सत्य हे !