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Originally Posted by Deep_
बीती बातें दोहराई जाए,
सूखी आंखे रुलाई जए ।
आती जाती है जो सांस सी,
यादें वो सारी भुलाई जाए ।
अब रोशनी की क्या जरुरत?
उमीद हर एक मिटाई जाए...
फिर कभी भी जल न पाए,
हर लौ...एसे बुझाई जाए।
उसके दिल पे बोझ न पड़े,
कुछ एसी चाल चलाई जाए...
मै ही बेवफा था आखिर,
यह बात उसको मनवाई जाए ।
कत्ल करने को काफी है,
पलकें गिराई जाए, उठाई जाए।
जहां आना जाना हो उनका,
लाश वहीं दफनाई जाए|
(दीप)
२.३.१५
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दीप जी आपका ये सूत्र देखा तो आपकी पहली कविता "कुछ और" के लिये था जो कि बहुत ही प्रशन्सनीय है , लेकिन आपकी दूसरी रचना पढने के बाद मुझे समझ नहीं आ रहा कि किन शब्दों में आपकी तारीफ करूँ , आपकी ये दूसरी रचना वास्तव में बहुत बहुत ज्यादा अच्छी है ।