Re: !! प्रसिद्द हिंदी कहानियाँ !!
पैसे लेकर प्रीतो चली गई। तीन-चार बरस उसका कोई पता न चला। एक दिन मैडम ही कहीं से ख़बर लाई थी कि उसका पति उसे बहुत मारता है। एक दिन देवर ने छुड़ाने की कोशिश की थी सो उसे भी मारा और प्रीतो को घर से निकाल दिया। वो तो पड़ोसियों ने बीच-बचाव करके फिर मेल करा दिया। मैं थोड़ी दु:खी हुई, फिर सोचा बच्चे हैं, बच्चों के सहारे औरतें रावण के साथ भी रह लेती हैं। कल बड़े हो जाएँगे। उनके साथ प्रीतो भी बड़ी हो जाएगी।
वक्त बढ़ता रहा। रोज़ सुबह भी होती, शाम भी। बच्चे स्कूल जाते, घर आते। आदित्य भी और मैं भी ज़िन्दगी के ऐसे अभिन्न अंग बन चुके थे कि उसी रोज़ के ढर्रे में ज़रा भी व्यवधान आता तो बुरा लगता। अपनी छोटी-सी दुनिया में पूरी दुनिया दिखाई देती। न वहाँ कहीं प्रीतो होती न उसका वह मरघट पति।
इसी तरह एक शाम आई। साथ लाई कुछ मेहमान। आदित्य बाज़ार से कुछ सामान लाने गए थे। तभी दरवाज़े की घंटी बजी। दरवाज़ा खोला तो एक अजनबी औरत अपने फूल-से दो बच्चों को थामे खड़ी थी। मैंने सोचा किसी का पता पूछना चाहती है। मैंने उसे सवालिया निगाहों से देखा। वो मुस्कुराई। होंठ मुरझाए से थे तो भी मुस्कुराहट पहचान लेने में मुझे ज़्यादा देर न लगी। मैंने कहा, 'प्रीतो' - वो बच्चों की उँगलियाँ छुड़ाकर यों लिपटी जैसे इस भरी दुनिया में उसे पहिचानने वाली सिर्फ़ मैं अकेली थी।
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