Re: पौराणिक कथायें एवम् मिथक
बहुत सी बाधाएं पार करने के बाद वह महान संत ‘उत्नापिश्तिम’ के पास आता है जिसे मौत नहीं मार सकती और जिसे अमरत्व का रहस्य मालूम है. गिलगमेश उत्नापिश्तिम के सामने अमरत्व विषयक अपनी जिज्ञासायें रखता है. उत्नापिश्तिम पहले गिलगमेश को हतोत्साहित करने की कोशिश करता है. वह उसे बताता है कि मौत अवश्यभावी है, अतः उससे बचा नहीं जा सकता. इस पर गिलगमेश उससे पूछता है कि वह (उत्नापिश्तिम) कैसे अमर हो गया? तब उत्नापिश्तिम उसे अपनी कथा सुनाता है कि किस प्रकार वह जल-प्रलय के समय देवताओं की कृपा से वह बच पाया था. अमरत्व देवताओं की कृपा है.
इस पर गिलगमेश निराश होता है. उत्नापिश्तिम उसे एक उपाय बताता है. इसके अनुसार यदि गिलगमेश समुद्र के तल में पैदा होने वाली एक जड़ी को ले आता है और उसका सेवन करता है तो उसे अक्षय यौवन की प्राप्ति हो सकती है. यह सुन कर गिलगमेश अपने पैर में पत्थर बाँध कर समुद्र में कूद जाता है और उस जड़ी को ढूँढने में सफल हो जाता है. इसको ले कर वह समुद्र से बाहर आता है. वह बड़ा थक जाता है अतः रास्ते में एक कुयें पर नहाने के लिए रुकता है, जड़ी वहीँ रख कर नहाने लगता है. इसी बीच वहां एक सांप आ जाता है और उस जड़ी को खा लेता है. सांप की पुरानी खाल के स्थान पर नयी खाल निकल आती है. यह देख कर और सोच कर गिलगमेश बुरी तरह रोने लगता है कि उसके हाथ से अमरत्व निकल गया है. तत्पश्चात, गिलगमेश अमरत्व की खोज में हार कर निराश क़दमों के साथ वापिस लौट आता है. इस प्रकार उसकी अमरत्व की खोज भी यहीं समाप्त हो जाती है.
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