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Old 10-04-2015, 03:35 AM   #1
soni pushpa
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Default हम और हमारी सभ्यता और संस्कृति

हमारी भारतीय संस्कृति की महान और विस्तृत विचारधरा पर आज मुझे बड़ा गर्व है . क्यूंकि हमारी संस्कृति की छोटी से छोटी बातें भी अपने साथ कुछ अर्थ संजोये हुए होती हैं., उसकी कुछ अपनी वजह होती है हर मानव के भविष्य को उज्जवल बनाने की सिख बच्चो से लेकर बड़ो तक के लिए सामाजिक व्यवस्था बड़ी ही सुन्दरता से व्यवस्थित की गई थी .

आज भले ही जमाना कितना भी आधुनिक क्यूँ न हो गया हो किन्तु हमारे भारतीय संस्कृति की गरिमा में कोई कमी नहीं हमारी संस्कृति महान थी महान है और महान ही रहेगी क्यूंकि हिन्दू धर्म सनातन है हिन्दू धर्म के अनुसार

इंसान जन्म लेता है उससे पहले ही उसके संस्कार शुरू हो जाते हैं और इन्सान की मृत्यु तक ये संस्कार इंसान के साथ चलते हैं

अंत में मानव के लिए दाह संस्कार अंतिम होता है किन्तु बात यहाँ ही ख़त्म नहीं हो जाती, हम भारतीय हमाँरे पूर्वजो के लिए भी श्राद्ध कर्म करते हैं

हमारे यहाँ इन्सान के संस्कार १६ कहे गएँ हैं जो की इस तरह से माने गए हैं .

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1)गर्भाधान संस्कार, (2)पुंसवन संस्कार, (3)सीमन्तोन्नयन संस्कार, (4)जातकर्म संस्कार, (5)नामकरण संस्कार, (6)निष्क्रमण संस्कार, (7)अन्नप्राशन संस्कार, (8)मुंडन संस्कार, (9)कर्णवेधन संस्कार, (10)विद्यारंभ संस्कार, (11)उपनयन संस्कार, (12)वेदारंभ संस्कार, (13)केशांत संस्कार, (14)सम्वर्तन संस्कार, (15)विवाह संस्कार और (16)अन्त्येष्टि संस्कार।



अब कुछ बातें हम आज के युग की कर लें हम देखते हैं अक्सर की किसी का जन्मदिन मनाते हैं तब, अब हम भी पाश्चात्य सभ्यता की नक़ल करने लगे हैं और मोमबत्ती बुझाकर केक कटाने लगे हैं अब हम भूल गए हैं की हमार्री अपनी संस्कृति क्या है , संस्कार क्या है .. पाश्चात्य सभ्यता में दिए बुझाकर और ए केक को काटकर याने एक तो अँधेरा पहले करो फिर काटो याने हम अपने जीवन के सबसे महत्वपूर्ण दिन की शुरुवात ही अँधेरा करने के बाद करते हैं, और जब अँधेरा पहले ही अपने जीवन में बिखेर देंगे हम तो फिर उजाले की आशा कहाँ से रखें. मैंने एक बार किसी की बर्थडे पार्टी में किसी से पूछा की आप क्यूँ केक काटते हो और क्यों मोमबत्ती बुझाकर अपना जन्म दिन मनाते हो उन्होंने कहा सब एइसा ही करते है, इसलिए हम भी एइसा ही करते हैं . तब मै सोच में पड़ गई की आखिर क्यूँ हम हमारी संस्कृति की महांनता को नहीं समझ पा रहे. क्यों अनुकरण ही अनुकरण हो रहा है हमारे समाज में? क्यूँ हम अपनी भारतीयता को विदेशो में नहीं जता पाते.

(माफ़ कीजियेगा यहाँ मेरा ये कहने का कदापि अर्थ न लगाया जाय की मुझे किसी जाती और धर्म से नफ़रत है या कोई भेदभाव है मेरे मन में, या अन्य धर्म के लिए मेरी दृष्टि में निम्न भावना है ..मेरा मानना है की सब धर्म अच्छे हैं .. और साफ, सही बातें ही इंसानों को सिखलाते है क्यूंकि एक सर्वोच्च सत्ता ही सारे विश्व का सञ्चालन करती है और वो सर्वोच्च सत्ता है ईश्वरीय सत्ता और ईश्वर एक है हम इंसानों ने उसे बाँट दिया हैऔर अपने अलग अलग धर्म स्थापित करके आज हजारो मासूमो की जाने धर्म के नाम पर ली जा रही है जबकि कोई धर्म यह नहीं सिखलाता की किसी का दिल दुखाओ , या किस को मार डालो या किसी को परेशां करो धर्म तो वो है जो जीवन देता है पालता ,है इंसानों को और आगे बढाता है जीवन जीने की राह बताता है )

मै सिर्फ यहाँ अपनी भारतीय परम्परा , सभ्यता, संस्कृति की महत्ता के लिए ही कुछ अपने विचार रखने की इच्छुक थी इस वजह से मैंने इतना लिखा है .

यदि हमे आपनी भारतीय संस्कृति सभ्यता को आने वाली पीढ़ी को बताना है तो शुरुवात एक- एक घर से करनी होगी ,. जब आपके घर के छोटे छोटे बच्चे बचपन से अपने घर में भारतीय परंपरा के अनुसार दिनचर्या जीते घर के लोगो को देखेंगे तो स्वतः उन्हें अपनी संस्कृति का ज्ञान होगा और वें एइसे वातावरण में ढलने की वजह से जल्दी पाश्चात्य संस्कृति में नहीं ढल पाएंगे और इससे हमारे देश की संस्कृति और सभ्यता की जड़ें मजबूत होंगी .अब समय आ गया है की हम खुद पहले अपनी सभ्यता , अपनी संस्कृति को सम्मान दें और आगे बढ़ाएं ताकि हमारी आने वाली पीढियां हमारी भारतीय सभ्यता और संस्कृति से वंचित ना रह जाएँ जो की अनमोल है अतुलनीय है .इसे बचाना हमारा फ़र्ज़ है .
soni pushpa is offline   Reply With Quote