View Single Post
Old 30-10-2010, 06:17 PM   #7
ABHAY
Exclusive Member
 
ABHAY's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: Bihar
Posts: 6,259
Rep Power: 34
ABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud of
Post

सिंहासन बत्तीसी 06

एक दिन राजा विक्रमादित्य अपनी सभा में बैठा हुआ था कि एक ब्राह्यण आया। उसने बताया कि उत्तर में एक जगंल है। उसमें एक पहाड़ है। उसके आगे एक तालाब है, जिसमें स्फटिक का एक खंभा है। जब सूरज निकलता है तब वह भी बढ़ता जाता है। दोपहर को वह खंभा सूरज के रथ के बराबर पहुंच जाता है। दोपहर बाद जब सूरज के छिपने के साथ वह भी पानी में लोप हो जाता है।

यह सुनकर राजा को बड़ा अचंभा हुआ। ब्राह्यण के चले जाने पर उसने दोनों वीरों को बुलाया और ब्राह्यण की बताई सब बात सुनाकर कहा कि मुझे उस तालाब पर ले चलो।

वीरों ने बात-की बात में उसे वहां पहुंचा दिया। राजा देखता क्या है कि तालाब का चारों ओर से पक्का घाट बना है। और उसके पानी में हंस, मुर्गाबियां चकोर, पनडुब्बी किलोल कर रही हैं। राजा बहुत खुश हुआ। इतने में सूरज निकला। खंभा दिखाई देने लगा। राजा ने वीरों से कहा कि मुझे खंभे पर बिठा दो। उन्होंने बिठा दिया। अब खंभा ऊंचा होने लगा। ज्यों ज्यों वह सूरज के रथ के बराबरा पहुंचा, राजा को गर्मी लगने लगी। जब वह सूरज के रथ के बराबर पहुंचा, राजा जलकर अंगारा हो गया। सूरज के रथवान ने यह देखा तो रथ को रोक लिया। सूरज ने झांका तो उसे जला हुआ आदमी दिखाई दिया। उसने सोचा कि जबतक मरा हुआ आदमी पड़ा है, तबतक मैं भोजन कैसे करुं। उसने अमृत लेकर राजा पर छिड़का। राजा जी उठा। उसने सूरज प्रणाम किया। सूरज ने पूछा तो उसने बता दिया कि मेरा नाम विक्रमादित्य है। सूरज ने अपना कुण्डल उतारकर राजा को दिया और उसे विदा किया।

राजा अपने नगर में लौटा। रास्ते में उसे एक गुसाई मिला। उसने कहा, 'हे राजा! यह कुण्डल मुझे दे दो।" राजा ने हंसकर वह कुण्डल उसे दे दिया और अपने घर चला आया।

इतना कहकर कामकुंदता बोली, "तुम ऐसे हो तो सिंहासन पर बैठो।"

राजा बड़ा गुस्सा हुआ। उसने मन-ही-मन कहा, " कुछ भी हो, मैं कल सिंहासन पर जरुर बैठूंगा।"

राजा खंभे पर बैठ गया।

अगले दिन जब वह ऐसा करने लगा तो कोमुदी नाम की सातवीं पुतली उसके पैरों में आ गिरी। बोली,

"जरा मेरी बात सुन लो, तब सिंहासन पर बैठना।"
__________________
Follow on Instagram , Twitter , Facebook .
ABHAY is offline   Reply With Quote