Re: सप्ताहांत चिन्तन :: अभिषेक की कलम से
चलिए अब ऑटो रिक्शा वालो के जश्न पर वापिस चलते हैं. मामला कुछ ऐसा था विजय और उसके दोस्त भारत की जीत की खुशी मनाते मरीना बीच पहुच गए थे, जरा सोचिये मरीना बीच, रात के ११ बजे हुए, पूरी बम्बई रौशनी से चौकाचौंध, मानो भारत के जीत का स्वागत करते हुए.
फिर भी उस ज़माने में आज की तरह लोग आतिशबाजी नहीं किया करते थे, फिर भी विजय और उसके दोस्तों ने बीच पर गुब्बारों का जुगाड़ किया था और उन्हे फूला कर फोड़ा था.
इस बीच कुछ ऑटो रिक्शा वाले भी आ गये थे, उन्हे कुछ खास अंदाज़ा नही था की क्या हो रहा है लेकिन जश्न का हिस्सा सभी बन गये थे, विदेशी दारू के लिए पैसे नही बचे तो देसी दे काम चलाया गया था, पर पार्टी रात भर चलती रही थी.
आज विजय और उनके दोस्त कहा है, ऑटो रिक्सा वाले क्या कर रहे है, किसी तो नही पता, लेकिन २८ साल पहले की वो रात शायद कोई नही भुला होगा, आज धोनी की टीम ने इस जीत से उस रात की यादें इन लोगो के जेहन में ज़रूर तरोताज़ा कर दी होगी.
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